Book Title: Bhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 89
________________ ८१ ११ – अहो भगवान् ! क्या कृष्णराजियों में सूर्य चन्द्रमा की प्रभा ( कान्ति ) हैं ? हे गौतम ! नहीं है । १२ - श्रहो भगवान् ! कृष्णराजियों का वर्ण कैसा है ? हे गौतम! कृष्णराजियों को देख कर देवता भी भय पावे, ऐसा उनका काला वर्ण है। ". १३ - अहो भगवान् ! कृष्णराजियों के कितने नाम हैं ? हे गौतम! कृष्णराजियों के ८ नाम है--१ कृष्णराजि, २ मेघराजि, ३ मघा, ४ माघवती, ५ वातपरिघा, ६ वात परिखोभा, ७ देवरिया, ८ देवपरखोभा । १४ - अहो भगवान् ! क्या कृष्णराजियाँ पृथ्वी का परि यहाँ पर कृष्णराज के ८ नाम कहे गये हैं । उनका अर्थ इस प्रकार है -१ काले पुद्गलों की रेखा को 'कृष्णराजि' कहते हैं । २ काले सेघ की रेखा के तुल्य होने से इसको 'मेघराजि' कहते हैं । ३ 'मघा' छठी नारकी का नाम है। छठी नारकी के समान अन्धकार वाली होने से इसको 'मघा' कहते हैं । ४ ' माघवती' सातवीं नरक का नाम है । सातवीं नारकी के समान अन्धकार वाली होने से इसको 'माघवती' कहते हैं | ५ कृष्णराज वायु के समूह के समान गाढ़ अन्धकार वाली है, परिघ ( आगल ) के समान दुर्लभ्य ( मुश्किल से उल्लंघन करने योग्य ) होने से इसको 'वालपरिघा' कहते हैं । ६ कृष्णराज वायु के. के समूह समूह के समान गाढ़ अन्धकार वाली होने से परिक्षोभ ( भय ) उत्पन्न करने वाली है, इसलिए इसको 'वातपरिखोभा' कहते हैं । ७ दुर्लक्ष्य होने से कृष्णराजि देवताओं के लिए 'परिघ' आगल के समान हैं, इसलिए इसको 'देवपरिघा' कहते है। देवताओं को भी क्षोभ (भय) उत्पन्न करने वाली होने से कृष्णराजि को 'देवपरिखोभा' कहते हैं। ६

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