Book Title: Bhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 118
________________ ११० जाते हैं । उरपर की स्थिति, जघन्य अन्तमुहूर्त, उत्कृष्ट कोड पूर्व की, कुलकोडी दस लाख है, पांचवीं नरक तक जाते हैं । भुजपर की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त, उत्कृष्ट कोड पूर्व की, कुलकोडी नव लाख है। दूसरी नरक तक जाकर उत्पन्न होते हैं। . २-अहो भगवान् ! वेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय की कितनी कुलकोडी है ? हे गौतम ! वेइन्द्रिय की कुलकोडी सात लाख है । तेइन्द्रिय की कुलकोडी आठ लाख है। चौइन्द्रिय की कुलकोडी नव लाख है। ३- अहो भगवान् ! गन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? हे गौतम ! गन्ध सात प्रकार का तथा सात सौ प्रकार का कहा गया है। ४- अहो भगवान् ! पुष्प ( फूल ) की कितनी कुलकोडी है ? हे गौतम ! पुष्प की सोलह लाख कुलकोडी है। जल से के सामान्य रूप से गन्ध के ७ भेद हैं-१ मूल-सोच वनस्पति आदि । २-त्वचा-वृक्ष की छाल । ३ काष्ठ- चन्दन आदि।४निर्यास वृक्ष का रस-कपूर आदि । ५ पत्र-जातिपत्र, तमालपत्र आदि । ६ पुष्प-फूल प्रियङ्ग-वृक्ष के फूल आदि । ७ फल-इलायची, लौंग आदि। इन सात को काला आदि पांच वर्ण से गुणा करने से ३५ भेद हो जाते हैं । ये सब सुगन्धित पदार्थ हैं । इसलिये एक 'सुगन्ध' से गुणा करने पर फिर ३५ के ३५ ही रहे। इन ३५ को पांच रस से गुणा करने पर. १७५ हुए। न्य पि स्पर्श आठ हैं किन्तु उपरोक्त सुगन्धित पदार्थों में व्यवहारदष्टि से और स्पशे ( कोमल, हल्का, ठण्डा, गर्म) ही माने गये हैं। इस७५ को ४ से गुणा करने पर ७०० भेदं होते हैं । ( ७४५४१X ७००)।

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