Book Title: Bhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 122
________________ ११४ असातावेदना भी वेदता है। दस दण्डक श्रदारिक के जीव पहले दूसरे भांगे में कदाचित् महा वेदना वेदते हैं कदाचित अल्प वेदना वेदते हैं उत्पन्न होने के बाद बेमाया (विविध प्रकार से ) वेदना वेदते हैं । ३- - अहो भगवान् ! क्या जीव श्राभोग ( जाणपणा ) से आयुष्य बाधा है या श्रनाभोग (अजाणपणा ) से ग्रायुय बांधता है ? हे गौतम ! जीव अनाभोग से आयुष्य बांधता | इसी तरह २४ ही दण्डक में कह देना चाहिए । ४ - श्रहो भगवान् ! क्या जीव कर्कश वेदनीय ( दु:ख से वेदने योग्य ) कर्म बांधता है ? हाँ, गौतम ! बांधता हो भगवान ! इसका क्या कारण ! हे गौतम ! १८ पाप करने से जीव कर्कश वेदनीय कर्म बांधता है। इसी तरह २४ ही "दuse में कह देना चाहिए । · ५ - ग्रहो भगवान् ! क्या जीव अकर्कश वेदनीय ( सुख पूर्वक वेदने योग्य) कर्म बांधता है ? हाँ, गौतम ! बांधता है. हो भगवान ! इसका क्या कारण ? हे गौतम । १८ पाप का त्याग करने से जीव कर्कश वेदनीय कर्म बांधता है । इसी तरह मनुष्य में कह देना । शेष २३ दण्डक के जीव अकर्कश वेदनीय कर्म नहीं हैं। ६ - ग्रहो भगवान् ! क्या जीव सातावेदनीय कर्म बांधत ? हाँ, गौतम ! बांधता है । अहो भगवान् ! जीव सात 1

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