Book Title: Bhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 106
________________ पात यावत् स्थूल परिग्रह का त्याग करना: अर्थात् पांच अणुव्रतों का पालन करना । उत्तर गुणं पञ्चक्खाण के दो भेद-सर्व उत्तरगुण पञ्चक्खाण, देश उत्तरंगुण पञ्चक्खाण। सर्व उत्तरगुण पञ्चक्खाण के* १०. भेद-१ अणागयं (जो तप आगामी काल में करना है वह पहले कर लेवें), २ अइक्कंत-(जो तप पहले करना था वह किसी कारण से नहीं हो सका तो पीछे करे ) ३ कोडी सहियं-(जैसा तप पहले दिन-श्रादि में करें वैसा पिछले दिन (अंतमें) भी करे, बीच में नाना प्रकार का तप करे),४ नियंटियं (नियमित दिन में विघ्न आने पर भी धारा हुआ-विचारा हुआ तप अवश्य करे ), ५ सागारं (प्रागार सहित तप करे ), ६ अणागारं (आगार रहित तप करे ), ७ परिमाणकडं (xदत्तिदात कवल-( ग्रास), घर, चीज आदि का परिमाण करे ), ८. निरवसेसं (चारों प्रकार के ग्राहार का त्याग करे. संथारा करे ), ६ संकेयं-(मुष्टि आदि संकेत पूर्वक तप करे ), १० अद्धा: (काल का परिमाण कर तप करे )। देश उत्तरगुण पच्च +गाथा-अणागय मइक्कत, कोडीसहियं नियंटियं चेव। .. ... सागारमणागारं, परिमाण कडं निरवसेसं ।। . संकेयं चेव अद्धाएं, पच्चक्खाणं भवे दसहा ॥ "::एक साथ एकबार पात्र में पड़ा हुवा अन्नादि को १ दात कहते हैं .:.:अद्धा तप के १० भेद हैं-१ नवकारसी; २ पोरिसी, ३ दो पोरिसी ४ एकासन, ५ एकलठाण, ६ आयम्बल, ७ नीवि, उपवास, अभिग्रह १० दिवस चरिम ।

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