Book Title: Bhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 108
________________ १०० गुण पच्चक्खाणी, उससे उत्तरगुण पच्चक्खाणी असंख्यात गुणा, उससे अपच्चक्खाणी असंख्यात गुणा । मनुष्य में सब से थोड़े मूलगुण पच्चक्खाणी, उससे उत्तरगुण पच्चक्खाणी संख्यात गुणा, उससे अपचक्खाणी असंख्यात गुणा । ४ – अहो भगवान् ! क्या जीव सर्व मूलगुण पच्चक्खाणी है या देश मूलगुण पच्चक्खाणी है या अपच्चक्खाणी है ? हे गौतम ! समुच्चय जीव में भांगा पावे ३ । नारकी से वैमानिक तक मनुष्य और तिर्यंच पंचेन्द्रिय वर्ज कर २२ दण्डक में भांगा पावे एक-पच्चक्खाणी । तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय में भांगा पावे २ ( देशमूलगुण पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी ) । मनुष्य में भांगा - पावे ३ । अल्पबहुत्व — समुच्चय जीव में सबसे थोड़े सर्वमूलगुणपच्चक्खाणी, उससे देश मूलगुण पच्चक्खाणी असंख्यात गुणा, उससे पच्चक्खाणी अनन्तगुणा । तिर्यंच पंचेन्द्रिय में सब से थोड़े देशमूलगुण पच्चक्खाणी, उससे अपच्चक्खाणी असंख्यात गुणा । मनुष्य में सबसे थोड़े सर्व मूलगुण पच्चक्खाणी, उससे देश मूलगुण पच्चक्खाणी संख्यात गुणा, उससे अपच्चक्खाणी असंख्यातगुणा । ५ - अहो भगवान् ! क्या जीव सर्वउत्तर गुण पच्चक्खाणी. है या देशउत्तरगुणपच्चक्खाणी है या अपच्चक्खाणी है ? हे गौतम ! समुच्चय जीव में भांगा पावे ३ । मनुष्य और तिथंच

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