Book Title: Bhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 115
________________ २०७ i. ५-अहो भगवान् ! जीव जीवपने कितने काल तक रहता है ? हे गौतम ! जीव जीवपने सदैव रहता है। .... ६-अहो भगवान् ! वर्तमान समय में तत्काल के उत्पन्न हुए पृथ्वीकाय के जीवों को प्रति समय एक एक अपहरे तो कितने समय में निर्लेप होवे ( खाली होवे) ? हे गौतम ! जघन्य पद में असंख्याता अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल में और उत्कृष्ट पद में भी असंख्याता अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल में निर्लेप होवे । जघन्य पद से उत्कृष्ट पद.में असंख्यातगुणा काल ज्यादा समझना चाहिये । इसी तरह अप्काय, तेउकाय, चायुकाय का. भी कह देना चाहिये। वनस्पति अनन्तानन्त होने से कभी निर्लेप नहीं होती है। त्रसकाय जघन्य प्रत्येक सौ सागर में और उत्कृष्ट प्रत्येक सौ सागर में निर्लेप होती है। जघन्य पद से उत्कृष्ट पद विसेसाहिया (विशेषाधिक ) है। ७-अवधिज्ञानी अगगार के शुद्धाशुद्ध लेश्या आसरी १२ अलावा कहे जाते हैं: १-अविशुद्धलेशी अणगार समुद्घात रहित अविशुद्धलेशी देव देवी को नहीं जानता नहीं देखता है। २-अविशुद्धलेशी अणगार समुद्घातरहित विशुद्धलैशी देव देवी को नहीं जानता, नहीं देखता है। इसीतरह समुद्घात सहित के २ अलावा कह देना । इसी तरह समुद्घात असमुद्घात के शामिल २ अलावा कह देना । अविशुद्ध लेश्या आसरी इन ६ अलावों में नहीं जानता नहीं देखता : है। विशुद्ध लेश्या आसरी ६ अलावों में जानता है, देखता है। ये १२ अलावा हुए।

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