Book Title: Bhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 99
________________ जाति के देवता एकान्त सुखरूप वेदना वेदते हैं, कदाचित् दुःख रूप वेदना भी वेदते हैं । औदारिक के. १० दण्डक विविध प्रकार की ( वेमाया ) वेदना वेदते हैं अर्थात् कदाचित् सुख और कदाचित् दुःख वेदते हैं। . ६-अहो भगवान् ! क्या नारकी का नेरीया आत्मशरीर क्षेत्रावगाढ़ (स्व शरीर क्षेत्र ओघाया ) पुद्गलों को ग्रहण कर आहार करता है या अनन्तर क्षेत्रांवगाढ़ (अपने शरीर क्षेत्र ओघाया की अपेक्षा दूसरा क्षेत्र.) पुद्गलों को ग्रहण कर आहार करता है या परंपरक्षेत्रावगाढ (आत्म क्षेत्र से अनन्तर क्षेत्र उससे पर क्षेत्र वह परंपर क्षेत्र ) पुद्गलों को ग्रहण कर आहार करता है ? हे गौतम ! श्रात्मशरीर क्षेत्रावगाढ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण कर अाहार करता है। अनन्तर क्षेत्रावगाढ और परंपरक्षेत्रावगाढ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण कर आहार नहीं करता है । इसी तरह २४ ही दण्डक कह देना चाहिए । ... ७-अहो भगवान् ! क्या केवली महाराज इन्द्रियों से जानते और देखते हैं ? हे गौतम ! केवली महाराज इन्द्रियों से नहीं जानते और नहीं देखते हैं । छही दिशाओं में द्रव्य क्षेत्र काल भाव मित ( मर्यादा सहित ) भी जानते देखते हैं और अमित ( मर्यादा रहित ) भी जानते देखते हैं यावत् केवली ..का दर्शन निरावरण (आवरण रहित.) है। . ... सेवं भंते ! . . सेवं भंते ॥

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