Book Title: Bhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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किया । तप संयम से आत्मा को भावते हुए विचरने लगे। उन स्थविर मुनियों में से कितनेक मोक्ष गये और कितनेक देवलोक में गये। ..... ५. श्री गौतम स्वामी ने पूछा कि-अहो भगवान् ! देवलोक कितने प्रकार के हैं ? हे गौतम ! देवलोक चार प्रकार के हैं--भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक । भवनपति १० प्रकार के हैं, वाणव्यन्तर ८ प्रकार के, ज्योतिपी ५ प्रकार के और वैमानिक २ प्रकार के हैं।
सेवं भंते! . सेव भंते !!
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- श्री भगवतीजी सूत्र के छठे शतक के पहले उद्देशे में 'वेदना निर्जा' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं
महावयणे य वत्थे, कद्दमखंजण कए य अहिगरणी। .. ... तणहत्थे य कवल्ले, करण महायणा जीवा ॥
१---अहो भगवान् ! क्या जो महादेदना वाला है वह महा निर्जरा वाला है और जो महानिर्जरा वाला है वह महाक्रमण करना जरूरी (आवश्यक ) हैं। बीच के २२ तीर्थङ्करों के साधु दोष लगने पर प्रतिक्रमण करते हैं। उन्हें प्रतिदिन प्रतिक्रमण करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन उठती चौमासी और संवत्सरी का प्रतिक्रमण करना जरूरी है।
के देवों सम्बन्धी विस्तार जम्बूद्वीपपन्नति आदि सूत्रों में है।
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