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वीतराग
३१७ जो साधक कामनाओ को पार कर गए हैं, वस्तुतः वे ही मुक्त पुरुष हैं।
३१८ जो लोभ के प्रति अलोभ वृत्ति रखता है, वह और तो क्या काम भोगो के प्राप्त होने पर भी आकृष्ट नही होता।
जो वासना के प्रवाह को नही तर पाए है वे संसार के प्रवाह को नही तैर सकते । जो इन्द्रिय जन्य काम भोगो को पार कर तट पर नही पहुँचे हैं, वे संसार सागर के तट पर नही पहुँच सकते । जो रागद्वेप को पार नही कर पाए हैं, वे संसार सागर से पार नहीं हो सकते ।
३२० कामनाओ का पार पाना, बहुत कठिन है।
३२१
उच्च दृष्टि वाला साधक ही पाप कर्मों से दूर रहता है ।
३२२ वीतराग सत्यद्रष्टा को कोई उपाधि होती है या नही ? नही ।