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मृत्यु
६५३ जैसे सिंह मृग को पकड कर ले जाता है उसी प्रकार मृत्यु अन्त समय मे मनुष्य को पकडकर परलोक मे ले जाती है। उस समय उसके माता पिता भ्रात आदि कोई भी सहायक नही होता है।
९५४ हे राजन् । इस अशाश्वत जीवन मे पुण्य को न करने वाला जीव मृत्यु के मुख मे पहुँचकर सोच करता है और धर्म को न करने वाला जीव परलोक मे जाकर सोच करता है ।
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जिसकी मृत्यु से मित्रता है जो मृत्यु से भाग सकता है जिसको यह ज्ञान है कि मैं नही मरूगा वही आगामी दिवस की आशा कर सकता है।
६५६ मनुष्यदेह क्षणभगुर है तथा व्याधि जरामरण और वेदना से पूर्ण है।
६५७ देखो ससार की ओर दृष्टिपात करो। बालक और वृद्ध सभी मरते है कई मनुष्यो का गर्भावस्था मे ही अवसान हो जाता है। जैसे वाझ पक्षी तीतर पर झपटा लगा के उसका सहार करता है उसी प्रकार आयुष्य का क्षय होते ही मृत्यु मनुष्य पर चोट लगाकर उसका प्राण हर लेता है।
६५८ पण्डितो का सकाम मरण होता है।