Book Title: Bhagavana Mahavira ki Suktiya
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 336
________________ ३२६ भगवान महावीर को सूक्तियां १००३ काउसग्गेणं भंते ! जीवे कि जणयई ? काउसग्गेणं तीयपडुप्पन्नपायछित्त विसोहेइ विशुद्ध पायच्छित्ते य जोवे निव्वुयहियए अोहरिय भरोव्व भारवहे पसत्थज्झाणोवगए सुहं सुहेण विहरइ । १००४ पच्चक्खाणेणं भंते । जीवे किं जरणयई ? पच्चक्खाणेणं आसवदाराई निरु भइ पच्चक्खाणेणं इच्छानिरोहं जणयइ इच्छानिरोहं गए य णं जीवे सव्वदब्वेसु विणीयतण्हे सीइभूए विहरइ । १००५ सूरोदए पासति चक्खुणेव वो अच्चेति जोवणंच १००७ चइज्ज देहं न हु धम्मसासण १००८ आगाए धम्म

Loading...

Page Navigation
1 ... 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355