Book Title: Bhagavana Mahavira ki Suktiya
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
View full book text
________________
प्रशरण
९८९ वित्त पसवो व नाइनो, त बाले सरणं ति मन्नई, एए मम तेसुवि, अहं नो तारण, सरणं न विज्जई
880 दाराणि सुया चेव मित्ता य तह बन्धवा जीवन्तमणु जोवन्ति मय नाणु वयन्तिय
९६१ जमिण जगई पुढो जगा, कम्मेहिं लुप्पंति पारिणणो । सयमेव केड़ेहि गाहई, नो तस्स मुच्चेज्जपुठ्ठयं ।
९६२ पुढो छदा इह माणवा पुढो, दुक्ख पवेइय
६६३ जहेह सीहोव मिय गहाय, मच्चु नर नेह हु अंतकाले न तस्स माया व पिया व भाया कालम्मि तस्स सहरा भवति

Page Navigation
1 ... 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355