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सम्यग्दर्शन
६४१ सम्यग्दर्णी साधक कभी पाप कर्म नहीं करता।
६४२ सम्यक्त्व के अभाव मे चारित्र नही हो सकता।
सम्यग्दर्शन के अभाव मे जान प्राप्त नहीं होता, ज्ञान के अभाव मे चारित्र के गुण नही आ सकते, गुणो के अभाव मे मोक्ष नही होता और मोक्ष के अभाव मे निर्वाण प्राप्त नहीं होता।
૬૪૪ जिवादिक सत्य पदार्थों के अस्तित्व के विषय मे सद्गुरु के उपदेश से अथवा स्वय ही अपने भाव से श्रद्धा करना दर्शन कहा गया है।
६४५ दर्शन के अनुसार ही श्रद्धा रक्खो ।
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सम्यक् दर्शन से पतित हुआ प्राणी सम्यग्ज्ञान से भी भ्रष्ट्र हो जाता है।
६४७ जो वीर हैं और सम्यक्त्व दर्शी है, उन्ही का पराक्रम शुद्ध है।