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धर्म और नीति ( सदगुरण ) ११५
३६८
अक्रोधी सत्यरत तपस्वी होता है ।
३६६ अप्रमादी होता हुआ विचरे ।
३७०
जैसे संग्राम के अग्रभाग पर शत्रु का दमन किया जाता है वैसे ही इन्द्रियो के विषयो का दमन करो ।
३७१
मेधावी धर्म को जाने ।
३७२
व्याकरणादि का अध्ययन करे ।
पण्डित पुरुष
३७३
पूर्व काल मे प्राप्त प्रशसा आदि की इच्छा नही करे ।
३७४
वाचना से निर्जरा होती है ।