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श्रमणोपासक
६०७ सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते है।
६०८ श्रमणोपासक चार प्रकार के होते हैंसर्पण के समान-स्वच्छहृदय, पताका के समान अस्थिर हृदय स्थाणु के समान मिथ्याग्रही तीक्ष्णकंटक के समान कटुभाषी
६०६ जिसका हृदय स्फटिक रत्न के समान निर्मल, दानादि लोक सेवा के लिए उदार चित्र वाला है और जिसके घर का द्वार सदा खुला रहता है। राजभवन से लेकर साधारण घरो तक वह नि शक होकर प्रवेश कर सकता है । ऐसा श्रावक का जीवन होता है।