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सरलता
३४०
बिना किसी छिपाव या दुराव के किए हुए कर्म को किया हुआ कहिए तथा नही किए हुए कर्म को न किया हुआ कहिए ।
३४१
यदि साधक कभी कोई चाण्डालिक दुष्कर्म करले तो फिर कभी उसे छिपाने का प्रयत्न न करे ।
३४२
ऋजु अर्थात् सरल आत्मा की विशुद्धि होती है, और विशुद्ध आत्मा मे ही धर्म ठहरता है ।
३४३
जो प्रमादवश हुए कपटाचरण के प्रति पश्चाताप करके सरल हृदय हो जाता है, वह धर्म का आराधक है ।
३४४
दम्भ रहित अविसवादी आत्मा ही धर्म का सच्चा आराधक होता है ।
३४५ करणसत्य-व्यवहार मे स्पष्ट तथा सच्चा रहने वाला आत्मा दर्श को प्राप्त करता है ।