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( १२ )
वत मे ही नही हो पा रहा है ।'
'आज रात्रि को मैंने अद्भुत स्वप्त देते हैं ।' 'स्वप्न ? कैसे स्वप्न ?"
'जी हा प्रभो ! अर्धरात्री के पश्चात् मैंने
पूरे सोलह स्वप्न देखे हैं । स्वप्नो को देखने के बाद ऐसा लग रहा है "ऐसा लग रहा है कि
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'हा | हां। कहो कैसा लग रहा है ?"
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'कि मानो तोनो लोको को सम्पदा हो मुझे मिल गयी हो ।
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कि मानो मैंने अमूल्य निधि प्राप्त करली हो । कि मानो मैंने जीवन का सार उपलब्ध कर लिया हो ।'
'अच्छा। तो कहो क्या स्वप्त थे वे ।'
'हा वही तो मैं आपसे निवेदन करने आई है। इसलिये कि आप मुझे बतायें कि उनका फल क्या है ?"
'जरूर बताऊगा | अब बोलो क्या स्वप्न थे ?'
रानी मरुदेवी ने सभी सोलह स्वप्न बता दिये और उनके फल | सुनने को प्रातुर हो उठी। महाराज नाभि ने जब रानी के मुख से स्वप्नो को चुना तो वे भी फूले न समाये और झट से रानी को अक से लगा लिया। रानी सिहर उठी
'अरे ' आपको क्या हो गया ? मेरे स्वप्नों का फल तो
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वताइये ।'
'रानी तुम धन्य हो । तुम्हारे स्वप्न सत्यात आनन्ददायक हैं. और अनुपन हैं ।'
'अव फल भी बतायोगे या नही ।'
'सुनो रानी तुम्हारे गर्भ मे आज महान पुण्यशाली' केदल ज्ञान नान्त्राज्य को प्राप्त करने वाली, तेजन्त्री, पृथ्वी को श्रानन्दित करने वाली, सुर, नर और खग अर्थात सभी देवो महेन्द्रो, नरेन्द्रो से पूजित महान धात्मा श्रा गई है।