Book Title: Bauddh Dharm Evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 30
________________ हैं। अतः उन्होंने अन्य दर्शनों के खण्डन की अपेक्षा उनकी दार्शनिक अवधारणाओं की जैन दर्शन के साथ संगति कैसे संभव है, यही दिखाने का प्रयत्न किया है। उन्होंने बौद्धप्रमाणमीमांसा की समीक्षा नहीं की, किंतु जैसा हम पूर्व में उल्लेख कर चुके हैं, उन्होंने दिग्नांग के न्यायप्रवेश की टीका अवश्य रची है। __ जैन प्रमाणशास्त्र के व्यवस्थित प्रस्तुतिकरण के साथ-साथ बौद्ध प्रमाणशास्त्र की तार्किक समीक्षा करने वाले आचार्यों में भट्ट अकलंक (ईस्वी 720 से 780) का स्थान प्रथम है। उन्होंने तत्त्वार्थवार्तिक के अतिरिक्त लघीयस्त्रय, न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय, प्रमाणसंग्रह आदि अनेक ग्रंथ रचे हैं, जिनमें जहां एक ओर जैन प्रमाणमीमांसा का सुव्यवस्थित प्रस्तुतिकरण है, वहीं दूसरी ओर अन्य दर्शनों के साथसाथ बौद्ध प्रमाणमीमांसा के प्रमाणलक्षण, निर्विकल्पप्रत्यक्ष, अपोहवाद, शब्दार्थ-संबंध, हेतु की त्रिरूपता आदि का खण्डन तथा स्मृति, प्रत्यभिज्ञा एवं तर्क के प्रमाण्य का स्थापन तथा उनको न मानने संबंधी बौद्धों के तर्कों का निरसन किया गया है। अकलंक के पश्चात् विद्यानंद (9वीं शती) के श्लोकवार्तिक, प्रमाणपरीक्षा आदि ग्रंथों में भी प्रमाण संबंधी बौद्ध मंतव्यों की स्पष्ट समीक्षा की गई है। जहां अकलंक के ग्रंथों में बौद्ध मंतव्यों की समीक्षा हेतु दिनांग और धर्मकीर्ति के ग्रंथ ही आधार रहे हैं, वहां विद्यानंद ने दिनांग और धर्मकीर्ति के अतिरिक्त प्रज्ञाकरगुप्त के मंतव्यों का भी युक्तिसंगत खण्डन किया है। विद्यानंद के पश्चात् जैन प्रमाणशास्त्र के एक प्रमुख आचार्य अनन्तवीर्य हुए हैं, इनका काल दसवीं शती है। इन्होंने अकलंक के दो ग्रंथों सिद्धिविनिश्चय और प्रमाणसंग्रह पर व्याख्या लिखी है। इनमें दिनांग एवं धर्मकीर्ति के अतिरिक्त धर्मोत्तर, अर्चट, प्रज्ञाकरगुप्त, शांतरक्षित और कमलशील जैसे बौद्ध दार्शनिकों को न केवल उद्धृत किया गया है, अपितु उनके मंतव्यों की समीक्षा भी की गई है। अनन्तवीर्य के पश्चात् जैन न्याय के क्षेत्र में तत्त्वबोधविधायनी नामक सन्मतितर्क की टीका के कर्ता अभयदेवसूरि (11वीं शती), प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचंद्र के रचनाकार प्रभाचंद्र (11वीं शती), प्रमाणनयतत्त्वालोक और उसकी स्वोपज्ञ टीका स्याद्वादरत्नाकर के कर्ता वादीदेवसूरि (12वीं शती) तथा उसी ग्रंथ की रत्नाकरावतारिका नामक टीका के रचनाकार आचार्य रत्नप्रभ और प्रमाणमीमांसा के कर्ता आचार्य हेमचंद्र (12वीं शती) आदि जैनप्रमाणशास्त्र के प्रबुद्ध आचार्य हुए हैं। इन सभी ने दिनांग, धर्मकीर्ति, धर्मोत्तर, अर्चट, प्रज्ञाकरगुप्त, शांतरक्षित, कमलशील आदि बौद्ध आचार्यों और उनके ग्रंथों का न केवल 24

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