Book Title: Bauddh Dharm Evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 62
________________ की संकीर्णता की ही सूचक है। रागभावना जोड़ने का काम कम और तोड़ने का काम अधिक करती है। ममत्व की उपस्थिति में समत्व सम्भव नहीं है और समता के अभाव में सामाजिकता नहीं होती है। सामान्यतया राग-द्वेष का सहगामी होता है और जब सम्बंध राग और द्वेष के आधार पर बनते हैं तो वे विषमता और संघर्ष को जन्म देते हैं। बोधिचर्यावतार में आचार्य शांतिदेव लिखते हैं उपद्रवा ये च भवन्ति लोके यावन्ति दुःखानि भयानि च। सर्वाणि तान्यात्मपरिग्रहेण तत् किं ममानेन परिग्रहेण ॥ आत्मानमपरित्यज्य दुःखं त्यक्तुं न शक्यते। यथाग्निमपरित्यज्य दाहं त्यक्तुं न शक्यते ॥ अर्थात् संसार के सभी दुःख और भय तथा तजन्य उपद्रव ममत्व के कारण ही होते हैं, जब तक ममत्व बुद्धि का परित्याग नहीं किया जाता, तब तक उन दुःखों की समाप्ति सम्भव नहीं है। जैसे अग्नि का परित्याक किए बिना तज्जन्य दाह से बचना सम्भव नहीं है, वैसे ही ममत्व का परित्याग किए बिना दुःख से बचना सम्भव नहीं है। पर में आत्मबुद्धि या राग भाव के कारण ही 'मैं' और 'मेरे' पन का भाव उत्पन्न होता है। यही ममत्व भाव है। इसी आधार पर व्यक्ति मेरा परिवार, मेरी जाति, मेरा धर्म, मेरा राष्ट्र ऐसे क्षुद्र घेरे बनाता है। परिणामस्वरूप भाई-भतीजावाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता और संकुचित राष्ट्रवाद का जन्म होता है। आज यदि मानव जाति के सुमधुर सम्बंधों में कोई भी तत्त्व सबसे अधिक बाधक है तो वह ममत्व या रागात्मकता का भाव ही है। ममत्व या रागात्मकता व्यक्ति को पारिवारिक, जातीय, साम्प्रदायिक और राष्ट्रीय क्षुद्र स्वार्थों से ऊपर नहीं उठने देती। बौद्ध दर्शन इसीलिए राग के प्रहाणपर बल देकर सामाजिक चेतना को एक यथार्थ दृष्टि प्रदान करता है। क्योंकि राग सदैव ही कुछ पर होता है और जो कुछ पर होता है वह सब पर नहीं हो सकता है। राग के कारण हमारे स्व की सीमा संकुचित होती है। यह अपने और पराये के बीच दीवार खड़ी करता है। व्यक्ति जिसे अपना मानता है, उसके हित की कामना करता है और जिसे पराया मानता है उसके हितों का हनन करता है। सामाजिक जीवन में शोषण, क्रूर व्यवहार, घृणा आदि उन्हीं के प्रति किए जाते हैं, जिन्हें हम अपना नहीं मानते हैं। अतः रागात्मक सम्बंधों के आधार पर सामाजिकता की सच्ची चेतना जागृत नहीं होती। यद्यपि रागात्मकता या ममत्व के घेरे को पूरी तरह तोड़ पाना सामान्य व्यक्ति के 56

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