Book Title: Bauddh Dharm Evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 75
________________ बुद्ध का मध्यममार्गधर्मनिरपेक्षता का आधार बुद्ध ने अपने दर्शन को मध्यममार्ग की संज्ञा दी है। जिस प्रकार नदी की धारा कूलों में न उलझकर उनके मध्य से बह लेती है, उसी प्रकार बौद्धधर्म भी ऐकान्तिक दृष्टियों से बचकर अपनी यात्रा करता है। मध्यममार्ग का एक आशय यह भी है कि वह किसी भी दृष्टि को स्वीकार नहीं करता। सांसारिक सुखभोग और देहदण्डन की प्रक्रिया दोनों ही उसके लिए ऐकान्तिक है। एकान्तों के त्याग में ही मध्यम मार्ग की विशिष्टता है। मध्यममार्ग का अर्थ हे- परस्पर विरोधी मतवादों में किसी एक ही पक्ष को स्वीकार न करना। बुद्ध का मध्यममार्ग अनैकान्तिक दृष्टि का उदाहरणहै। यद्यपि वे केवल निषेधमुख से इतना ही कहते हैं कि हमें ऐकान्तिक दृष्टियों में नहीं उलझना चाहिए। धार्मिक निरपेक्षता का भी किसी सीमा तक यही आदर्श है कि हमें किसी एक धर्म विशेष या मतवाद विशेष में न उलझकर एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। बुद्ध के शब्दों में एकांशदर्शी ही आपस में झगड़ते और उलझते हैं। मध्यममार्ग का तात्पर्य है- विवादों से ऊपर उठना और इस अर्थ में वह किसी सीमा तक धर्मनिरपेक्षता का हामी है। बौद्धधर्म यह मानता है कि जीवन का मुख्य लक्ष्य तृष्णा की समाप्ति है। आसक्ति और अहं से ऊपर उठना ही सर्वोच्च आदर्श है। दृष्टिराग वैचारिक तृष्णा अथवा वैचारिक अहं का ही एक रूप है और जब तक वह उपस्थित है तब तक मध्यममार्ग की साधना सम्भव नहीं है। अतः मध्यममार्ग का साधक इन दृष्टिरागों से ऊपर उठकर कार्य करता है। जैसा कि बौद्ध दर्शन में कहा गया है कि पण्डित वही है जो उभय अन्तो का विवर्जन कर मध्य में स्थित रहता है। वस्तुतः माध्यस्थ दृष्टि ही धर्मनिरपेक्षता है। बुद्ध का जीवन और धार्मिक सहिष्णुता यदि हम बुद्ध के जीवन को देखें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वे स्वयं किसी धर्म या साधना-पद्धति विशेष के आग्रही नहीं रहे हैं। उन्होंने अपनी साधना के प्रारम्भ में अनेक धर्मनायकों, विचारकों और साधकों के जीवन्त सम्पर्क स्थापित किया था और उनकी साधना पद्धतियों को अपनाया। उदकरामपुत्त आदि अनेक साधकों के सम्पर्क में वे आए और उनकी साधना पद्धतियों को सीखा। यह समस्त चर्चा पालि त्रिपिटक में आज भी उपलब्ध है। चाहे आत्मतोष न होने पर उन्होंने उनका बाद में त्याग किया हो फिर भी उनके मन में सभी साधकों के प्रति सदा आदरभाव रहा और ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भी उनके मन में यह अभिलाषा रही कि अपने द्वारा उद्घाटित सत्य का बोध उन्हें कराएं। यह hy

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112