Book Title: Bauddh Dharm Evam Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 43
________________ विभज्यवाद : भाषा-विश्लेषण का पूर्वरूप बुद्ध के समय अनेक दार्शनिक विचारधाराएं प्रचलित थीं। जैनों के अनुसार उस समय क्रियावाद-अक्रियावाद आदि 363 और बौद्धों के अनुसार 62 दार्शनिक सम्प्रदाय प्रचलित थे। बुद्ध और महावीर ने इन सबके दार्शनिक विरोधों को देखा और पाया कि ये सभी दार्शनिक मतवाद दार्शनिक जिज्ञासाओं के एकपक्षीय समाधानों पर खड़े हुए हैं और इसलिए परस्पर एक-दूसरे के विरोधी बन गए हैं। उनकी दृष्टि में तत्त्व-मीमांसीय प्रश्नों के एकपक्षीय एवं निरपेक्ष उत्तर ही मिथ्या धारणाओं को जन्म देते हैं। आत्मा नित्य है या अनित्य है? शरीर और आत्मा भिन्न है या अभिन्न? आदि प्रश्नों का उत्तर जब ऐकांतिक या निरपेक्ष रूप में दिया जाता है तो वस्तु-स्वरूप का यथार्थ प्रतिपादन नहीं हो पाता। विश्व की समस्त सत्ताएं और समग्र घटनाएं अपने आप में एक जटित तथ्य है और इन तथ्यों का सम्यक् प्रतिपादन तो विश्लेषण का पद्धति के द्वारा ही सम्भव है। इसलिए भगवान बुद्ध ने एक ऐसी प्रणाली विकसित की, जिसमें दार्शनिक एवं जटिल प्रश्नों के उत्तर उन्हें विविध पहलुओं में विश्लेषित कर दिए जाते थे। प्रश्नों को विश्लेषित कर उत्तर देने की यह पद्धति जैन और बौद्ध परम्पराओं में विभज्यवाद के नाम से जानी जाती है। विभज्यवाद एक विश्लेषणवादी (Analytic method) पद्धति है। प्रश्नों का यह विश्लेषण ही हमें तात्त्विक समस्याओं की सही समझ दे सकता है। यही कारण था कि अनेक संदर्भो में बुद्ध ने समकालीन भाषा-विश्लेषकों के समान ही तत्त्व-मीमांसा का प्रत्याख्यान कर तात्त्विक प्रश्नों की आनुभविक स्तर पर ही व्याख्या करना उचित समझा और यह कहा कि जहां आनुभविक स्तर पर व्याख्या करना सम्भव नहीं हो, वहां मौन रहना ही अधिक श्रेयस्कर है। महावीर ने भी अपने भिक्षुओं को स्पष्ट निर्देश दिया था कि वे तात्त्विक चर्चा या व्यावहारिक प्रश्नों के समाधान में विभज्यवादी या विश्लेषणात्मक पद्धति ही अपनाएं और निरपेक्ष रूप से कोई भी कथन न करें।' बुद्ध भी स्वयं अपने को अविभज्यवादी कहते थे। - बौद्ध-ग्रंथ अंगुत्तर निकाय में किसी प्रश्न का उत्तर देने की चार पद्धतियां प्रस्तुत की गई हैं- 1. एकांशवाद- प्रश्न का एकपक्षीय या निरपेक्ष उत्तर देना, 2. विभज्यवादप्रश्न को विभाजित करके उसके प्रत्येक पक्ष का सापेक्ष उत्तर देना, 3. प्रतिप्रश्न- प्रश्न का सीधा उत्तर न देकर उस पर प्रतिप्रश्न कर देना और 4. अव्याकृतवाद- प्रश्न को 37

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