Book Title: Bauddh Dharm Evam Darshan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya VidyapithPage 52
________________ उन्हें अव्याकृत बताया, क्योंकि इन प्रश्नों का हां या ना में एकान्तिक उत्तर देने पर शाश्वतवाद या उच्छेदवाद में किसी एक विचार का अनुसरण होता है। बुद्ध आत्मा के सम्बंध में किसी भी एकान्तिक दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हैं। बुद्ध स्पष्ट कहते हैं कि 'मैं हूं' - यह गलत विचार है, - 'मैं नहीं हूं' - यह गलत विचार है, 'मैं होऊंगा' - यह गल विचार है और 'मैं नहीं होऊंगा यह गलत विचार है। ये गलत विचार रोग हैं, फोड़े हैं काटे हैं। बुद्ध ने इन्हें रोग, फोड़े और शल्य इसलिए कहा कि इस प्रकार के विचारों से मानव मन को शांति नहीं मिल सकती। बुद्ध यह नहीं चाहते थे कि मनुष्य यह सोचे वि कहीं मैं मृत्यु के बाद विनष्ट तो नहीं हो जाऊंगा, क्योंकि ऐसा सोचेगा तो उसे अत्यंत वेदन होगी। स्वयं भगवान् बुद्ध के शब्दों में उसे आंतरिक अशनित्रास होगा। ऐसे होगा जैसे हृद पर बिजली गिर पड़ी हो - हा! मैं उच्छिन्न हो जाऊंगा। हा! मैं नष्ट हो जाऊंगा। हाय! मैं नह रहूंगा! इस प्रकार, अज्ञ पुरुष शोक करता है, मूर्च्छित होता है। 14 उच्छेदवाद मानव कं शांति प्रदान नहीं कर सकता। यह भी सम्भव है कि उच्छेदवाद को मानने पर दुराचारों क ओर प्रवृत्ति हो जाए, क्योंकि दुराचारों का प्रतिफल भावी जन्मों में मिलेगा- ऐसा विचा भी मानव - मन में नहीं रहेगा। इस प्रकार, एक ओर अनावश्यक भय मानव-मन को अक्रा करेंगे, दूसरी ओर अनैतिक - जीवन की ओर प्रवृत्ति होगी। बुद्ध यह भी नहीं चाहते थे वि मनुष्य यह सोचे कि मरकर मैं तो नित्य, ध्रुव, शाश्वत, निर्विकार होऊंगा और अनन्त वर्ष तक वैसे ही स्थित रहूंगा, क्योंकि उनकी दृष्टि में ऐसा विचार आसक्तिवर्द्धक है। आत्मा क शाश्वत मानने पर मनुष्य यह विचार करने लगता है कि मैं विगत जन्म में क्या था, कौन मेरा था, मैं भविष्य में क्या होऊंगा। बुद्ध की दृष्टि में ये विचार भी चित्त के चिराग के लिए नहीं होते, उल्टे इनसे आसक्ति बढ़ती है, राग और द्वेष उत्पन्न होते हैं । बुद्ध के शब्दों में ये विचार अमन सिकरणीयधर्म ( अयोग्य विचार) हैं। 15 इस प्रकार, बुद्ध साधक को आत्मा सम्बंध में उच्छेदवाद और शाश्वतवाद की मिथ्या धारणाओं से बचने का ही संदेश देते हैं, लेकिन आखिर बुद्ध का आत्मा के सम्बंध में क्या दृष्टिकोण है, इसे भी तो जानना होगा। यदि बुद्ध के आत्म-सिद्धांत के बारे में कुछ कहना है, तो उसे अशाश्वतानुच्छेदवाद ही कह सकते हैं। बुद्ध के अनात्मवाद के सम्बंध में दो गलत दृष्टिकोण यद्यपि बुद्ध ने आत्मा के सम्बंध में शाश्वतवाद और उच्छेदवाद की एकान्तिक धारणाओं का विरोध किया, फिर भी उनके अनित्य, अनात्म, अव्याकृत तथा मौन को 46Page Navigation
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