Book Title: Barsanupekkha Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 2
________________ बारसा विरबा श्री वीतरागाय नमः प्रस्तावना आज से कुछ समय पूर्व तक अधिकांत: भारतीय पाश्चात्य विद्वान भारतीय संस्कृति धर्म दर्शन एवं साहित्य को मूल वेदों में देखने के अभ्यस्त थे किन्तु मोहन जोदड़ों हड़प्पा से प्राप्त सामग्री आदि साक्ष्यों के अध्ययन के गद चिन्तकों के चिन्तवन की दिशा ही बदल गई अब यह पूर्ण प्रमाणित हो चुका है कि श्रमण संस्कृति वैदिक संस्कृति से पूर्ण प्रथम एवं प्राचीन है। श्रमण संस्कति भारत में अत्यन्त प्राचीन काल से प्रभायमान है साहित्यिक परातात्विक साक्ष्यों भाषा वैज्ञानिक एवं शिला लेखीय आदि अन्वेषणों के आधार पर अनेक विद्वान अब यह मानने लगे हैं कि आर्यों के आगमन से पूर्व भारत में जो संस्कृति थी वह श्रमण संस्कृति या आर्हत् संस्कृति होनी चाहिए। श्रमण संस्कृति का भारत देश में ही नहीं विश्व में अपनी त्याग तपस्या श्रम: आध्यात्मिक अहिंसा आदर्शों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्रमण संस्कृति अनादि काल से अपने आप में प्रवाहित हो रही है वर्तमान अवसर्पिणी काल में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभ देव द्वारा प्रवाहित हुयी थी ऋषभ देव का वर्णन श्रमण एवं वैदिक इन दोनों ही संस्कृतियों में बड़े आदर से किया गया है जिन्होंने इस युग में असि, मसि कृषि विद्या वाणिज्य शिल्प इन षट कर्मों का प्रवर्तन किया था भगवान आदिनाथ के ही ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर इस देश का नाम भारत बर्ष पड़ा। इस प्रकार ऋषभ देव से लेकर चौबीस तीर्थंकरों की परम्परा में अंतिम तीर्थकर भगवान वर्द्धमान महावीर स्वामी जिन्होंने प्राणी मात्र को जीओ और जीने दो का संदेश दिया। आज इतिहास को पूर्ण न जानने वाले चन्द व्यक्ति श्रमण जैन संस्कृति को भगवान महावीर स्वामी से प्रारंभ मानते हैं यह उनका भ्रम है। महा श्रमण वर्द्धमान तीर्थंकर के पावन तीर्थ में श्रमण संस्कृति के गौरव पुन्जतत्त्व ज्ञानी महामनीषी बहु दिगम्बराचार्यों ने प्रायः सभी प्राचीन भारत भाषाओं एवं सभी विद्याओं में अपने श्रेष्ठ सद साहित्य के माध्यम से भारत साहित्य और चिन्तन परम्परा में भी वृद्धि कीPage Navigation
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