Book Title: Bambai Chintamani Parshwanathadi Stavan Pad Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Chintamani Parshwanath Mandir
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देरांणी-जेठाणी-झगरा
(११३ )
शीलवंत हुय सिंह सरीखा, ___कुण गंजे तसु नर रे, हां नहीं रे ।७। न कर। अँठो भोजन किम आचरिौं,
वमित वं कूकर रे, हां नहीं रे।।न कर। सगण सनाह निज सीख हियै धर,
'अमर' शील गण धर रे, हां नहीं रेहान कर।
देराणी-जेठाणी-झगरा देराणी जेठांणी दोय बहु झगरी री। डरपाई तौहि नाहिं डरी री,
देरांणी जेठाणी दोय अजब लरीरी।। दे। देराणी दिल की है झूठी, __ मोहन मॅदरी तेन हरी री।२। दे।
१. मोहनी राणी कुमता अने विवेक राजा नी राणी सुमता, एतले कुमता देराणी अने सुमता जेठाणी ए दोयां रै झगड़ी लागौ एतले पर परणते कुमता ते कर्म सत्ता मूल गुण नै पाछी ठेले छ द्रव्य क्रिया थी डरावै तौहि न डरै, एतले द्रव्य क्रिया करतां कुमत पाली न पड़े।
२. देराणी ते कुमत ते कर्म परिणती छै, ते झूठी विचारणा छै, ते भाव क्रिया मन प्रमोद करै एहवी भाव क्रिया उदै नहीं प्रावण देवै कपटी लीधी मुंधड़ी।
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