Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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नम्र निवेदन
यदि खुद उस समय तक जीता रहा तो खुद बखुद आप ही आप अपना कर्तव्य करके आनंद मना लेगा, अन्यथा उसके कर्त्तव्य को जाहिर कर अन्य कोई भी व्यक्ति आनंद मनाकर शताब्दिनायक के यशोगान के साथ २ उसकी यशोगाथा का भी लाभ उठा सकती है ।
इसमें तो शक नहीं है कि आप के जन्मशताब्दि महोत्सव को जैन जनता ने खूब आनंद के साथ अपनाया है, इसी तरह यदि जैन जनता का ख्याल बना रहा तो आप के जन्मशताब्दि महोत्सव को मनाते हुए जो जो कार्य करने की इच्छा प्रदर्शित की गई है वह कार्यरूप परिणत कर के आप के अर्द्धशताब्दि महोत्सव के प्रसंग में जनता के सामने रख दिया जा सकता है । इस लिये मेरा समग्र जैन जनता के प्रति यही सनम्र निवेदन है कि आप यथाशक्ति कर्त्तव्यपरायण होकर अर्द्धशताब्दि के लिये आज से ही तैयार होजावें ।
बडौदा. ३०-५-१९३६.
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निवेदक वल्लभ विजय
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