Book Title: Atmanand Prakash Pustak 068 Ank 03 04 Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra પુસ્તક સુ म ३-४ www.kobatirth.org જૈન ધર્મ પ્રકાશ { : पोष-भडा : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लड વીર સં ૨૪૭૮ वि.सं. २००८ वंदना | निराकार है याकि साकार है । गुणागार या निर्गुणागार है ॥ निराधार का जो कि आधार है । उसे ही हमारा नमस्कार है ॥ १ ॥ सभी ज्ञान का जो कि आगार है । दया का बड़ा जो कि भण्डार है ॥ मिटाता सदा जो अंहकार है । उसे ही हमारा नमस्कार है ॥ २ ॥ सुसौन्दर्य जो पुष्प का सत्व है । सुआनंद जो प्रेम का तत्त्व है || कि जिसका यही सत्य आकार है । राजमल भण्डारी - आगर बढ़ा तुच्छ को जो बनाता सदा । दया दीन पर जो दीखाता सदा ॥ कि जीसकी कृपा का नहीं पार I उसे ही हमारा नमस्कार है ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only उसे चार सो सो नमस्कार है ॥ ४ ॥Page Navigation
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