Book Title: Astittva aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ दस के समय ऐसा प्रतीत होता कि मैं नहीं बोलता, कोई आंतरिक प्रेरणा बोलती है । मुनि दुलहराजजी प्रारम्भ से ही साहित्य-संपादन के कार्य में लगे हुए हैं, वे इस कार्य में दक्ष हैं । प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादन में मुनि धनंजयकुमार ने निष्ठापूर्ण श्रम किया है । १४ सितम्बर, १६६० महावीर नगर, पाली (राजस्थान ) Jain Education International For Private & Personal Use Only युवाचार्य महाप्रज्ञ www.jainelibrary.org

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