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को मिलता है।
तो दुनिया में दो तरह के लोग हैं साधारणत: -वासना में उतरते मूर्छा से, उनको कुछ नहीं मिलता: फिर वासना से भयभीत हो कर भागते ब्रह्मचर्य की तरफ मा में, उनको भी कुछ नहीं मिलता। मिलता उसे है जो सजग हो कर, जाग कर, जीवन जो दिखाए उसे देखने को राजी होता है: जो कहता है, मेरी निजी कोई मर्जी नहीं, प्रभु जो दिखाएगा उसे देखेंगे, लेकिन साक्षी को जगा कर देखेंगे, पूरा-पूरा देखेंगे, रत्ती-रत्ती देखेंगे, कुछ छोड़ न देंगे, छोड़ने की जल्दी न करेंगे।
ऐसे सजग जागरण में सभी आदर्श अपने - आप फलने लगते हैं।
जब मैं तुमसे कहता हूं आदर्श छोड़ो तो मैं आदर्शों के विरोध में नहीं हूं। अगर तुम मेरी बात समझो तो मैं ही आदर्शों के पक्ष में हूं। क्योंकि जो मैं कह रहा हूं उसी से आदर्श फलेंगे। और जो तुम सुनते रहे हो, उससे आदर्श कभी नहीं फलते।
आदर्श के पीछे दौड़ो और आदर्श कभी न मिलेगा। और मैं तुमसे कहता हूं. रुको, जो है उसमें उतरो। आदर्श अपने-आप फल जाएंगे।
स्वभाव का अर्थ ही यही है, नियति का अर्थ ही यही है. कुछ करने को नहीं है। जाग कर जीना है। और जागना कोई करना थोड़े ही है! वह तो तुम्हारी क्षमता ही है। उसमें कुछ कृत्य जैसा नहीं है। लेकिन अहंकार आदर्शों से पलता है। तुम चकित होओगे। अहंकार बहुत घबड़ाता है इस बात से जो मैं कह रहा हूं। क्योंकि अगर मेरी बात तुमने मानी तो अहंकार इसी क्षण मर जाएगा। फिर अहंकार को सजाने के लिए कोई उपाय न रहेगा। अहंकार सजता है आदर्शों से। न तो कभी आदर्श मिलते, लेकिन अहंकार की दौड़ हो जाती। दौड़ में अहंकार है। और आदर्श दौड़ की सुविधा देते हैं। किसी को धन कमाना है, तो अहंकार को सुविधा है। किसी को पद पर पहुंचना है तो अहंकार को सुविधा है। किसी को मोक्ष पाना है, तो अहंकार को सुविधा है। किसी को त्यागी बनना है, तो अहंकार को सुविधा है। मैं कहता हूं. कुछ बनना नहीं, तुम हो! तो दौड़ खत्म। दौड़ गिरी, अहंकार गिरा।
अहंकार बड़ी सूक्ष्म प्रक्रिया है। अगर तुमने निरहकारिता का आदर्श बना लिया तो भी अहंकार बना रहेगा। अहंकार कहता है, निरहंकार होना है। फिर चली यात्रा, फिर चल पड़े तुम। फिर मन का व्यापार शुरू हो गया।
___ तुम कोई आदर्श मत बनाओ। फिर देखो क्या घटता है! तुम इतना ही कह दो कि जो हूं हूं ऐसा हूं! खोल कर रख दो अपनी किताब, ढांको मत। उदघोषणा कर दो कि बुरा हूं पापी हूं क्रोधी हूं कामी हूं-ऐसा हूं। और अपने बनाए हूं ऐसा नहीं, क्योंकि मैंने कभी ऐसा बनना नहीं चाहा। ऐसा मैंने अपने को पाया है तो मैं कर क्या सकता हूं? देखेंगा जो है। बैठ कर देखेंगे इस खेल को, जो प्रभु ने दिखाना चाहा, जरूर कोई राज होगा।
और राज है। राज यही है कि इस लीला को तुम देखने वाले बन जाओ, तुम द्रष्टा बन जाओ। आदर्श तुम्हें कर्ता बना देते हैं, कुछ करने का मौका हो जाता है। मैं तुमसे आदर्श छीन रहा हूं। अष्टावक्र तुमसे आदर्श छीन रहे हैं सिर्फ इसलिए ताकि कर्ता