Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 385
________________ देखे को अनदेखा कर रे, अनदेखे को देखा। अभी तो तुम जिसे देख रहे हो, उसी में उलझे हो। और जो दिखाई पड़ रहा है, वही संसार है। दृश्य संसार है। और जो देख रहा है, जो द्रष्टा है, वह तो अदृश्य है, वह तो बिलकुल छिपा है। देखे को अनदेखा कर रे, अनदेखे को देखा। क्षर लिख-लिख तू रहा निरक्षर...! लिखने-पढ़ने से कुछ भी न होगा। हम लिखते तो हैं और जो लिखते हैं उसको कहते हैं : अक्षर। कभी तुमने सोचा, अक्षर का मतलब होता है जो मिटाया न जा सके! लिखते तो क्षर हो, कहते हो अक्षर। कैसा धोखा देते हो, किसको धोखा देते हो? तुमने जो भी लिखा है, सब मिट जाएगा। लिखा हुआ सब मिट जाता है। शास्त्र लिखो खो जाएंगे; पत्थरों पर नाम खोदो, रेत हो जाएंगे। यहां तुम कुछ भी लिखो, नदी के तट पर रेत में लिखे गए हस्ताक्षर जैसा है, हवा का झोंका आया और खो जाएगा। शायद इतना भी नहीं है, पानी पर लिखे जैसा है, तुम लिख भी नहीं पाते और मिटना शुरू हो जाता है। क्षर लिख-लिख तू रहा निरक्षर..! अपढ़! अज्ञानी! मूड! क्षर को लिख रहा है और भरोसा कर रहा है अक्षर का? समय में लिख रहा है और शाश्वत की आकांक्षा कर रहा है? क्षुद्र को पकड़ रहा है और विराट की अभिलाषा बांधे है? क्षर लिख-लिख तू रहा निरक्षर, अक्षर सदा अलेखा। और तेरी इस लिखावट में ही, यह क्षर में उलझे होने में ही, अक्षर नहीं दिखाई पड़ता। अक्षर तेरे भीतर है। थोड़ी देर लिख मत, थोड़ी देर पढ़ मत, थोड़ी देर कुछ कर मत। थोड़ी देर दृश्य को विदा कर। थोड़ी देर अपने में भीतर आंख खोल-सुरति में। सूफियों के पास ठीक शब्द है सुरति के लिए, वे कहते हैं-जिक्र। जिक्र का भी वही अर्थ होता है, जो सुरति का। जिक्र का अर्थ होता है. स्मरण, याददाश्त, कि चलो बैठें, प्रभु का जिक्र करें, उसकी याद करें! जिसको हिंदू नाम-स्मरण कहते हैं। नाम-स्मरण का मतलब यह नहीं होता कि बैठ कर राम-राम, राम-राम करते रहे। अगर राम-राम करने से शुरू भी होता है राम का स्मरण, तो भी समाप्त नहीं होता। सूफियों का जिक्र समझने जैसा है। कुछ तुममें से प्रयोग करना चाहें तो करें। सूफियों के जिक्र का आधार है : अल्लाह! शब्द बड़ा प्यारा है। शब्द में बड़ा रस है। वह तो हम हिंदू मुसलमान, जैन ईसाई में बांट कर दुनिया को देखते हैं, इसलिए बड़ी रसीली बातों से वंचित रह जाते हैं। मैंने बहुत से शब्दों पर प्रयोग किया, ' अल्लाह' जैसा प्यारा शब्द नहीं है। 'राम' में वह मजा नहीं है। तुम जब ग्गुनगुनाओगे, तब पता चलेगा। जो गुनगुनाहट अल्लाह में पैदा होती है और जो मस्ती अल्लाह में पैदा होती है-वह किसी और शब्द में नहीं होती। चेष्टा करके देखना। ___ कभी रात के अंधेरे में द्वार-दरवाजे बंद करके दीया बुझा कर बैठ जाना, ताकि बाहर कुछ दिखाई ही न पड़े, अंधेरा कर लेना। नहीं तो तुम्हारी आदत तो पुरानी है, कुछ न कुछ देखते रहोगे।

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