Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 393
________________ अष्टावक्र कहते हैं : बार-बार आत्मा मिलती, बार -बार तुष्टि मिलती। मुहुर्मुहुः फिर-फिर! जैसे-जैसे संतोष घना होता है, फिर और बड़ी शांति बरसती है। और संतोष घना होता है, और बड़ा आनंद बरसता है। और शांति गहन होती है, और परमात्मा उतरता है! मुहुर्मुहु! फिर-फिर, बार-बार, पुन: -पुन:! और कोई अंत नहीं इस यात्रा का! तो मुमुक्षा परमात्मा के द्वार तक तो ले जाती है, लेकिन फिर द्वार पर अटका लेती है। अंतत: मुमुक्षा को भी छोड़ देना होगा। अंततः सब चाह छोड़ देनी होगी, उसमें मुमुक्षा की चाह भी सम्मिलित है। अगर मुक्त होना है, तो मुक्ति की आकांक्षा भी छोड़ देनी होगी। लेकिन जल्दी मत करना। पहले तो गंगा बनाओ, पहले तो और सब आकांक्षाओं को मुक्ति की आकांक्षा में समाविष्ट कर दो। एक ही आकांक्षा प्रज्वलित रह जाए। मन हजार तरफ दौड़ रहा है, वह एक ही तरफ दौड़ने लगे। मन में अभी खंड-खंड हैं, न मालूम कितनी मांगें हैं-एक ही मांग रह जाए। एक ही मांग रह जाएगी तो तुम एकजुट हो जाओगे। तुम्हारे भीतर एक योग फलित होगा। तुम्हारे खंड समाप्त हो जाएंगे, तुम अखंड बनोगे। फिर जब तुम पूरे अखंड हो जाओ तो अब तुम नैवेद्य बन गए। अब तुम जा कर परमात्मा के चरणों में अपनी अखंडता को समर्पित कर देना। अब तुम कहना. अब कुछ भी नहीं चाहिए! अब यह सब चाह-यह जानने की, मोक्ष की, तुझे खोजने की यह भी तेरे चरणों में रख देते हैं! गंगा उसी क्षण सागर में सरक जाती है, उसी क्षण सागर हो जाती है। झलक होश की है अभी बेखुदी में बड़ी खामियां हैं मेरी बंदगी में! झलक होश की है अभी बेखुदी में बड़ी खामियां हैं मेरी बंदगी में! अगर तुम्हें इतना भी होश रह गया कि मैं बेहोश हूं तो अभी बंदगी पूरी नहीं हुईअभी प्रार्थना पूरी नहीं हुई। तुम अगर राह पर मदमाते मस्त हो कर चलने लगे, लेकिन इतना खयाल रहा कि देखो कितना मस्त हूं तो मस्ती अभी पूरी नहीं मस्ती तो तभी पूरी होती है जब मस्ती का भी खयाल नहीं रह जाता। मोक्ष तो तभी पूरा होता है जब मोक्ष की भी आकांक्षा नहीं रह जाती। झलक होश की है अभी बेखुदी में बड़ी खामियां हैं मेरी बंदगी में। कैसे कहूं कि खत्म हुई मंजिले फनी इतनी खबर तो है कि मुझे कुछ खबर नहीं। अगर इतनी भी खबर रह गई भीतर कि मुझे कुछ खबर नहीं, तो काफी है बंधन, काफी अड़चन, काफी अवरोध और ध्यान रखना : बड़े-बड़े अवरोध तो आदमी आसानी से पार कर जाता है; छोटे अवरोध असली अड़चन देते हैं। धन पाना है, यह आकांक्षा तो बड़ी क्षुद्र है। इसको हम मोक्ष पाने की आकांक्षा में समाविष्ट कर दे सकते हैं। बड़ी आकांक्षा इसकी जगह रख देते हैं-मोक्ष पाने की आकांक्षा। सब

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