Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 402
________________ तो रहेगा। शक न होता तो सोचते ही क्यों? तब समर्पण एक छलांग होता है- क्याटम छलांग । तब तुम सोच कर नहीं करते। तब समर्पण एक पागलपन जैसा होता है, एक उन्माद की अवस्था होती है। तुम ऐसे भावाविष्ट हो जाते हो. एक श्रद्धा की क्रांति घटती है! लेकिन ऐसी क्रांति तो कभी सौ एक को घटती है; निन्यानबे तो सोच कर ही करते हैं। इसलिए जब तुम सोच कर करोगे, तो वह जो तुमने सोचा है बार-बार, वह जो तुमने निर्णय लिया है, वह चाहे बहुमत का निर्णय हो लेकिन है पार्लियामेंट्री । तुमने बहुत सोचा तुमने पाया. साठ प्रतिशत मन गवाही है समर्पण के लिए, चालीस प्रतिशत गवाही नहीं । तुमने कहा, अब ठीक है, अब निर्णय लिया जा सकता है। लेकिन यह पार्लियामेंट्री है। वह जो चालीस प्रतिशत राजी नहीं था, वह कभी भी कुछ सदस्यों को फोड़ ले सकता है। रिश्वत खिला दे, भविष्य का आश्वासन दिला दे - मिनिस्टर बना देंगे, यह कर देंगे, वह कर देंगे - वह मन के कुछ खंडों को तोड़ ले सकता है। वह किसी भी ि बल में आ सकता है। और उसके आने की संभावना है। क्योंकि जिस साठ प्रतिशत मन से तुमने समर्पण किया है, समर्पण करने के बाद कसौटी आएगी कि समर्पण से कुछ घट रहा है या नहीं पुन अब साठ प्रतिशत समर्पण से कुछ भी नहीं घटता, तो वह जो चालीस प्रतिशत मन है वह कहेगा 'सुनो, अब आयी अक्ल? पहले ही कहा था कि करो मत, इससे कुछ होने वाला नहीं है। यह भीतर की स्थिति है । घटती तो है घटना सौ प्रतिशत से। उसके पहले तो घटती नहीं, सौ डिग्री पर ही पानी भाप बनता है। साठ डिग्री पर बहुत से - बहुत गर्म हो सकता है, भाप नहीं बन सकता। तो गरमा गए हो। पहले की शांति भी चली गई, और ज्वर आ गया, और उपद्रव ले लिया ये गेरुए वस्त्रों का! वैसे ही परेशान थे, वैसे ही झंझटें काफी थी और एक नई झंझट जोड़ ली। वह जो चालीस प्रतिशत बैठा हुआ है, उसकी तो तुम आलोचना नहीं कर सकते, वह तो विरोधी पार्टी हो गया! विरोधी पार्टी को एक फायदा है। उसकी तुम आलोचना नहीं कर सकते। उसने कुछ किया ही नहीं, आलोचना कैसे करोगे? इसलिए विरोधी पार्टी के नेता बड़े क्रिटिकल और आलोचक हो जाते हैं। - हर चीज की आलोचना करने लगते हैं- यह गलत, यह गलत ! जो कर रहा है, निश्चित उस पर ही गलती का आरोपण लगाया जा सकता है। जो कुछ भी नहीं कर रहा...। वे इसलिए बड़े मजे की घटना सारी दुनिया में घटती रहती है - भीतर भी और बाहर भी! जो पार्टी हुकूमत में होगी वह ज्यादा देर हुकूमत में नहीं रह सकती। वह लाख उपाय करे सदा हुकूमत में नहीं रह सकती। क्योंकि जो भी वह करेगी, उसमें कुछ तो भूलें होने वाली हैं, कुछ तो चूके होने वाली हैं। जीवन की समस्याएं ही इतनी बड़ी हैं कि सब तो हल नहीं हो जाएंगी। जो नहीं हल होंगी, विरोधी पार्टी उन्हीं की तरफ इशारा करती रहेगी कि 'इसका क्या गुर इस संबंध में क्या? कुछ भी नहीं हुआ बरबाद हो गया मुल्क!' तो लोग धीरे - धीरे विरोधी की बात सुनने लगेंगे कि बात तो ठीक ही कह रहा है। विरोधी का बल बढ़ जाता है। जैसे ही विरोधी सत्ता में आया, बस उसका बल टूटना शुरू हो जाता है। सत्ताधिकारी सत्ता में आते से ही कमजोर होने लगता है। गैर-सत्ताधिकारी सत्ता के बाहर

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