Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 387
________________ सपने को थोड़ा विदा करो, अपने को थोड़ा देखो! अनदेखा दिखेगा! अलेखा दिखेगा! अक्षर उठेगा! अष्टावक्र के आठ अंगों के टेढ़े हो जाने की कथा का कुल इतना ही अर्थ है कि सुरति में कोई बाधा नहीं पड़ती। अंग टेढ़े हैं कि मेढ़े, तुम बैठे कि खड़े। तुमने देखा, अलग- अलग आसनों में परम ज्ञान उपलब्ध हुआ महावीर गौदोहासन में बैठे थे, बड़े मजे की बात है! जैनी बहुत चिंता नहीं करते कि क्या हुअP गौदोहासन में बैठे, कर क्या रहे थे? गौदोहासन का मतलब है जैसे कोई गाय को दोहते वक्त बैठता है। न तो गाय थी, न दोहने का कोई कारण था उनको-गौदोहासन में बैठे थे। उस वक्त उन्हें परम ज्ञान उपलब्ध हुआ। अब गौदोहासन कोई बहुत सुंदर आसन नहीं है तुम बैठ कर देख लेना। बुद्ध तो कम से कम भले ढंग से बैठे थे, सिद्धासन में बैठे थे। महावीर गौदोहासन में बैठे थे। महावीर आदमी ही थोड़े अनूठे हैं। नंग- धडंग गौदोहासन में बैठे हैं तब उन्हें परम ज्ञान उपलब्ध हुआ। शरीर तिरछा हो कि इरछा, छोटा हो कि बड़ा, ऐसा बैठे कि वैसा-नहीं, आसन से कुछ लेना-देना नहीं है। मन की दशा पुण्य की हो कि पाप की, अच्छा करने की हो कि बुरा करने की इससे भी कुछ लेना-देना नहीं है। अष्टावक्र का मौलिक सूत्र केवल इतना है कि तुम अगर साक्षी हो सको-तिरछा शरीर है तो तिरछे शरीर के साक्षी; और मन अगर पाप में उलझा है तो पाप में उलझे मन के साक्षी-तुम अगर साक्षी हो सको, दूर खड़े हो कर देख सको शरीर और मन को, तो घटना घट जाएगी। आठ अंगों से टेढ़े होने का अर्थ है, योग के अष्टागों का कोई उपाय न था। तुम पक्का समझो, अगर अष्टावक्र किसी योगी के पास जाते और कहते कि मुझे योग में दीक्षित करो, तो वह हाथ जोड़ लेता। कहता. महाराज, आप हमें क्यों मुसीबत में डालते हैं? यह नहीं हो सकता। आप, और योगासन कैसे करेंगे? एक अंग सीधा करने की कोशिश करेंगे, सात अंग तिरछे हो जाएंगे। इधर सम्हालेंगे, उधर बिगड़ जाएगा। कभी ऊंट को योगासन करते देखा है? अष्टावक्र को भी कोई योगी अपनी योगशाला में भरती नहीं कर सकता था। उपाय ही न था। यह तो केवल सुचक कथा है। यह कथा तो यह कहती है कि ऐसे आठ अंगों से टेढ़ा व्यक्ति भी परम ज्ञान को उपलब्ध हो गया, चिंता मत करो। देह इत्यादि में बहुत उलझे मत रहो। दूसरा प्रश्न : स्वामी रामतीर्थ का एक शेर है : राजी हैं उसी हाल में जिसमें तेरी रजा है, यूं भी वाह-वाह है, वू भी वाह-वाह है। लेकिन अपने राम को तो ऐसा लगता है : यूं भी गड़बड़ी है और वू भी गड़बड़ी है,

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