Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 370
________________ जब दूसरा सपना शुरू हुआ; जागने का सपना खो गया । फिर सुबह जब सपना टूटता है फिर दूसरा सपना शुरू हुआ। सपने में जो देखा था, वह अब खो गया। जब रात में गहरी नींद लगती है और सपना भी खो जाता है - तब जाग्रत में जो जाना, वह भी समाप्त हो गया, सपने में जो जाना, वह भी समाप्त हो गया । सुषुप्ति में दोनों ही खंडित हो गए। और जो लोग चौथी अवस्था को उपलब्ध होते हैं-चौथी, जो कि तुम्हारा निज - स्वरूप है, कहो बुद्धत्व, साक्षी - भाव, जिनत्व, जो भी नाम देना हो-जो उस चौथी शुद्ध अवस्था को उपलब्ध होते हैं, जहां परम जागरण रह जाता है, उनको पता चलता है कि वे तीनों अवस्थाएं खंडित हो गईं। स्वप्न, सुषुप्ति, जागृति–सब खंडित हो गए; कुछ और ही अनुभव में आता है। ब्रह्म ही ब्रह्म अनुभव में आता है। कहीं कोई संसार नहीं दिखाई पड़ता, कहीं कोई या नहीं दिखाई पड़ता । अपना ही फैलाव मालूम होता है । न कोई मैं बचता न कोई तू बचता। तो भारत कहता है. साक्षी - भाव में जो जाना जाता है, वही केवल सत्य है; उसका फिर कभी खंडन नहीं होता। यह जगत जिसको हम सत्य मान बैठे हैं- भारतीय मनीषा कहती है- इस जगत की परिभाषा. गच्छतीति जगत! जो जा रहा है- जगत। जो गया गया है-जगत। जो जा ही चुका है, जो जाने के किनारे खड़ा है- जगत। जगत का अर्थ है. जो अथिर है, जो थिर नहीं; जो नदी की धार की तरह बहा जा रहा है; जहां सब परिवर्तन ही परिवर्तन है और कुछ भी शाश्वत नहीं। जहां परिवर्तन है, वहां असत्य। और जहां अपरिवर्तित के दर्शन होते हैं, शाश्वत की प्रतीति होती है - वही सत्य । गच्छतीति जगत-जो भागा जा रहा है! जैसे आकाश में धुएं के बादल बनते हैं और मिटते हैं और रूप खड़े होते हैं और बिखरते हैं, क्षण भर भी कुछ ठहरा हुआ नहीं है- वैसा जगत! कोई गिर रहा, कोई उठ रहा; कोई जीत रहा, कोई हार रहा! जो हार रहा है, वह कल जीत सकता है। जो अभी रहा है, वह कल हार सकता है। यहां कुछ भी पक्का नहीं है, यहां सब चीजें बदली जा रही हैं। समुद्र की लहरें हैं! इसमें जिसने सत्य को खोजना चाहा, वह खाली हाथों मरता है। इस सारी बदलाहट के बीच, क्या तुम्हें कभी भी थोड़ा स्मरण आता है कि कोई ऐसी चीज है जो बिना बदली है? उस बिना बदले को ही हम आत्मा कहते हैं। दिन में तुम जागते हो - संसार - एक बात। यह जो भीतर तुम्हारे बैठा देखता है संसार को यह दूसरी बात है। रात तुम सपने में सो जाते हो, सपना देखते हो, तब भी दो चीजें रहती हैं- सपना और तुम । फिर तुम गहरी नींद में पड़ जाते हो, तब भी दो चीजें रहती हैं- तुम और गहरी नींद। गहरी नींद कभी सपना बन जाती है, सपना कभी गहरी नींद बन जाता है। सपने से कभी जाग आते हो, दुनिया आ जाती है, फिर दुनिया खोजी है; लेकिन एक चीज शाश्वत बनी रहती है- तुम्हारा साक्षी - भाव, तुम्हारा द्रष्टा- भाव, तुम्हारी अंतर्दृष्टि । तुमने देखा, गहरी नींद से भी उठ कर आदमी कहता है, रात बड़ी गहरी नींद आई, बड़ी आंनदपूर्ण नींद आई! पूछो उससे, अगर नींद पूरी लग गई थी तो यह पता किसको चला? यह किसने जाना ? यह कौन खबर दे रहा है ? जरूर तुम्हारे भीतर कोई था जो देखता रहा कि गहरी नींद लगी, बड़ी आंनदपूर्ण नींद लगी! किसी ने इसका प्रत्यक्ष किया है- वही तुम हो। और सब तो बदलता है, सिर्फ साक्षी नहीं

Loading...

Page Navigation
1 ... 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407