Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 381
________________ संन्यास बांसुरी है साक्षी-भाव की--(प्रवचन-पंद्रहवां) दिनांक: 10 अक्टूबर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना। पहला प्रश्न : आपने बताया कि जब अष्टावक्र मां के गर्भ में थे, उनके पिता ने उन्हें शाप दिया, जिसकी वजह से उनका शरीर आठ जगहों से आड़ा-तिरछा हो गया। भगवान, इस आठ का क्या रहस्य है? वे अठारह जगह से भी टेढ़े-मेढ़े हो सकते थे और अष्टावक्र कहलाते। यह आठ का ही आंकड़ा क्यों? यह आठ आंकड़ा अर्थपूर्ण है। ये छोटी-छोटी कहानियां गहरे सांकेतिक अर्थ लिए हैं। इन्हें तुम इतिहास मत समझना। इनका तथ्य से बहुत कम संबंध है। इनका तो भीतर के रहस्यों से संबंध है। आठ का आंकड़ा योग के अष्टांगों से संबंधित है। पतंजलि ने कहा है. आठ अंगों को जो पूरा करेगा-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि-वही केवल सत्य को उपलब्ध होगा। यह पिता की नाराजगी, यह पिता का अभिशाप सिर्फ इतनी ही सूचना देता है कि वे आठ अंग, जिनसे व्यक्ति परम सत्य को उपलब्ध होता है, मैं तेरे विकृत किए देता हूं। तुम्हें घटना फिर से याद दिला दूं। पिता वेदपाठी थे। वे सुबह रोज उठ कर वेद का पाठ करते। ख्यातिलब्ध थे, सारे देश में उनका नाम था। बड़े शास्त्रार्थी थे। और अष्टावक्र गर्भ में सुनता। एक दिन अचानक बोल पड़ा गर्भ से कि हो गया बहुत इस तोता-रटन से कुछ भी न होगा। जाने बिना सत्य का कोई पता नहीं चलता-पढ़ो कितना ही वेद, शास्त्र सत्य नहीं है सत्य तो अनुभव से उपलब्ध होता है। पिता नाराज हुए। पिता के अहंकार को चोट लगी। पंडित और पिता दोनों साथ-साथ। बेटे की बात बाप माने, यह बड़ी अनहोनी घटना है। नाराज ही होता है। बाप कभी यह मान ही नहीं पाता कि बेटा भी कभी समझदार हो सकता है। बेटा सत्तर साल का हो जाए तो भी बाप समझता है कि वह नासमझ है। स्वाभाविक है। बेटे और बाप का फासला उतना ही बना रहता है जितना शुरू में, पहले दिन होता है, उसमें कोई अंतर नहीं पड़ता। अगर बाप बीस साल बड़ा है तो वह सदा बीस साल बड़ा होता है। उतना अंतर तो बना ही रहता है। तो बेटे से ज्ञान ले लेना कठिन, फिर पंडित, तो और भी कठिनाई। बाप तो सोचता था मैं जानता हूं, और अब यह गर्भस्थ शिशु कहने लगा कि तुम नहीं जानते हो-यह तो हद हो गई! अभी पैदा भी नहीं हुआ। तो बाप ने अभिशाप दिया होगा; वह अभिशाप ज्ञान के आठ अंगों को नष्ट कर देने वाला है।

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