Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 316
________________ 'जीवन के ठीक से अवलोकन से किसी भाग्यशाली को ही जीने की कामना, भोगने की वासना और ज्ञान की इच्छा शांत हुई है। तीन बातें कह रहे हैं. जीने की कामना, जीवितेच्छा! जीवन को देखो तो, फिर कामना करो जीने की। यहां जीवन में रखा क्या है, धरा क्या है? जीवन को गौर से तो देखो ! इसकी आकांक्षा करने योग्य है? तो लोग यह तो देखते ही नहीं, लोग इस जीवन को तो देखते ही नहीं गौर से, परलोक की आकांक्षा करने लगते हैं। तो व्रत पैदा होता है। इस लोक को ही गौर से देखो, तो जीवितेच्छा विलीन हो जाती है, जीवन की आकांक्षा नहीं रह जाती। और जिसकी जीवन की आकांक्षा न रही, उसका परलोक है। जिसके जीवन की आकांक्षा न रही, उसका परम जीवन है। अब तुम फर्क समझना । फर्क बहुत बारीक है। जिस आदमी ने इस जीवन की व्यर्थता को देखा और पहचाना, वह किसी जीवन की भी आकांक्षा नहीं करता। उसकी आकांक्षा ही विलीन हो जाती है, देख कर ही विलीन हो जाती है। मैंने सुना है, एक युवक संन्यासी गांव से गुजरता था। वह बचपन से ही संन्यासी हो गया था। पिता मर गए, मां मर गई, कोई और पालने वाला न था। गांव के एक के संन्यासी ने उसे पाला । फिर का संन्यासी हिमालय चला गया, तो वह बच्चा भी उसके साथ हिमालय चला गया। वह हिमालय में ही बड़ा हुआ। अब का संन्यासी मर गया था तो वह वापिस दुनिया में लौट रहा था। युवा था, स्वस्थ था। वह पहले ही गांव में आया, तो उसने देखा एक बारात जा रही है। उसने कभी बारात नहीं देखी थी। बैड-बाजा बज रहा था। एक युवक घोड़े पर सवार है, बड़े लोग पीछे जा रहे हैं। उसने पूछा, यह क्या है? तो किसी ने समझाया कि बारात है। उसने पूछा, बारात यानी क्या? तो किसी ने समझाया कि भई तुम्हें इतना भी बोध नहीं है। यह जो घोड़े पर बैठा है, यह दूल्हा है, इसका विवाह होने वाला एक लड़की से । उसने कहा, फिर क्या होगा? तो किसी ने उसको पकड़ कर पास ले गया कि तू यहां आ, तुझे कुछ भी पता नहीं। उसने उसे सब समझाया कि फिर क्या होगा- शादी होगी इनकी, भोग करेंगे एक-दूसरे का, फिर इनका बच्चा पैदा होगा। बारात तो निकल गई। संन्यासी, रात हो गई थी, तो गांव के बाहर जा कर कुएं के पाट पर सो रहा, गर्मी के दिन थे। सपना उसने देखा कि घोड़े पर सवार है, बैंड-बाजे बज रहे हैं, बारात चल रही, फिर उसकी शादी हो गई, फिर वह अपनी पत्नी के साथ सो रहा है। और पत्नी ने उससे कहा कि जरा सरको, मुझे भी तो जगह दो। वह जरा सरका कि कुएं में गिर गया। सारा गांव इकट्ठा हो गया। हैरानी तो गांव को और इसलिए हुई कि वह कुएं में पड़ा पड़ा खूब खिलखिला कर हंस रहा है। लोगों ने पूछा : अरे भई हंसते क्यों हो? उसने कहा, हंसे नहीं तो क्या करें? मुझे निकालो तो मैं अपनी कथा कहूं। उसे निकाला। लोगों ने पूछा हंसते क्यों हो? कुएं में गिरना, तो मौत हो जाए - और तुम हंसते हो? उसने कहा, हंसने की बात हो गई। सपने की स्त्री ने कुएं में गिरा दिया, असली स्त्री क्या न करती होगी लोगों के साथ !

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