Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका।. पुरातन तत्त्ववेत्ता डाक्टर रायल साहबने लिखा है कि भारतवर्षकी चिकित्साविद्या आदिकालकी अथवा बहुत पुरानी है कारण कि अरब देशके वैद्योंने यह विद्या इसीसे सीखीथी । भारतवर्ष में बहुत कालसे जानी हुई.एक औषधी वहां अबतक प्रचारमें आती है यथा श्वासरोगमें धतूरोंका धूम पान करना पक्षाघात और अजीर्णमें कुचलेका प्रयोग विरेचनमें जमालगोटा आदि औषधी बड़े आदरसे यूरुपमें व्यवहार की जाती है प्रोफेसर विल्सन साहेब महांशयने लिखा है कि भारतवर्षमें बहुत पुराने समयसे चिकित्सा ज्योतिष दर्शन आदिके पारदर्शी विद्यमान हैं जिस समय. यूरुपदेशमें शारीरविद्या प्रचलित नहींथी उससमय भारतनिवासियोंने जैसी औषधी चिकित्सा और शस्त्र चिकित्सामें पारदर्शिता दिखाईथी उसीप्रकार शारीरविद्याकीभी उन्नति कीथी। श्रीमान् . पंडित राइट आनरेबल एलफिन्स्टन् महोदयने. अपने सुविख्यात भारतवर्षके इतिहासमें लिखा है कि भारत वर्षहीसे यूरोप देशके मनुष्योंने प्रथम चिकित्सा विद्या सीखी थी अब भी भारतवासियोंसे श्वासरोगमें धतूरा और कृमिरोगमें कमाच व्यवहार करना सीखते हैं हिन्दुओंका रसायन विद्याका ज्ञान विस्मयजनक और आशा अनुमानसेभी अधिक है । "न० से० सू०" . इत्यादि प्रमाणोंसे यह सूचित है कि सब विद्याओंका भंडार हमारा भारतवर्षही है इस देशके निवासी महर्षियोंने कपोलकल्पित रचना नहीं कीहै किन्तु देवताओंसे परंपरके क्रमसे चिकित्साकी प्रवृत्ति की है । इसी सिद्धान्तको विचार कर हमारे महात्मा ऋषिमुनि कहगयेहैं कि कठिन रोगसमूह उन्हीं औषधीद्वारा नष्ट होते हैं ।। . इसमें कोई संदेहभी नहीं है कि इस देशमें प्रादुर्भूत हुए मनुष्यों के स्वभावके अनुकूल इसी देशकी औषधी है परन्तु समयके हेर फेरसे जब हिन्दूराज्य परिवर्तित होने लगा तबसे अनेक शास्त्र और विद्या लोप होगई और चिकित्साके ग्रंथभी यहां तक लोप हुए कि केवल माधव निदान और शाङ्गधरादिग्रंथही बडे चिकित्साके ग्रंथ गिनेजानेलगे और उनका भी पठन पाठन न्यून होनेसे मानो एकप्रकारसे चिकित्साका लोपही हुआ चाहताथा कि ईश्वरेच्छासे जगद्विख्यात सेठजी श्रीयुत खेमराज श्रीकृष्णदासजीका इस ओर यह दृढ विचार हुआ कि वैद्यकशास्त्रके बडे बडे ग्रंथोंको भाषाटीका सहित छापकर इसका पूर्णतासे ऐसा प्रचार किया जाय कि भारतवर्षमें घरघर वे ग्रंथ विराजे जिस्से कि प्रत्येक भारतवासी अपनी प्राचीन वैद्यक चिकित्साका गौरव जानकर उसके प्रयोगोंसे पूर्णलाभ उठाकर सुखी हों दीर्घकालतक जीवन लाभ करें। यह अपनी इच्छा उक्त सेठजीने सद्वैद्य और अच्छे विद्वानोपर प्रगट करके सम्यक् प्रकारसे उनको दान मानसे संतुष्ट किया जिस्से कि उन्होंने अनेक प्रकारके छोटे बडे आर्ष ग्रंथ सेठजीको भाषाटीकासहित करके समर्पण किये जो कि तत्काल छापेगये और जो शेष है वह छापे जायगे तथा जिनकी आवश्य कताहै उनकी टीका करायी जाती है और पूर्ण आशाहै कि बहुत थोडे समयमें वैद्यकके सम्पूर्ण प्रधान और अप्रधान ग्रंथ प्रकाशित हो जायंगे जिससे इस देशको पूर्ण लाभ पहुंचेगा. शेषमें पाठकोंसे प्रार्थनाहै कि आपलोग इन आर्ष ग्रंथोंको देख उनके प्रयोगोंसे लाभ प्राप्त करें और यंत्राधीशके उत्साहको बढावें। For Private and Personal Use Only

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