Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टाङ्गहृदयसंहिताकीमें ऋषियोंके अनुरोधसे यहां पर आयुर्वेद पढने आया हूं, कृपापूर्वक मुझको आयुर्वेद सिखाय प्राणियोंको इस घोर संकटसे छुडाइये । इस प्रार्थनासे संतुष्ट होकर देवराज इन्द्रने महर्षि भरद्वाजको त्रिस्कन्ध हेतु, लिंग, व औषध ज्ञानात्मक अर्थात् रोगलक्षण और तिसके निवारण करनेके योग्य औषधज्ञानपूर्ण आयुर्वेद पढाया । .. ... तदुपरान्त विश्वामित्रादि मुनियोंने ज्ञानरूपी नेत्रोंसे देखा कि देवताओंमें श्रेष्ठ धन्वन्तरिजीने बनारसमें काशिराजके रूपसे अवतार लिया । ऋषिश्रेष्ठ विश्वामित्रजीने अपने पुत्र सुश्रुतसे कहाहे वत्स ! महादेवजीके प्रियस्थान बनारसमें जाओ। तहांपर आयुर्वेदविशारद धन्वन्तारजी क्षत्रियवंशमें जन्मलेकर दिवोदासनामकराजा हो विराजमानहैं । तिनसे आयुर्वेदको पढकर परोपकार रूप महायज्ञका अनुष्ठानकरों । अपने पिताकी आज्ञा पाय सुश्रुत एकशत मुनिकुमारोंको साथ ले आयुर्वेद पढनेको धन्वन्तरिजीके निकट गये। . ___ सुश्रुतादि महामुनियोंने काशीमें जायकर देखा कि सुरश्रेष्ठ काशिराज भगवान् धन्वन्तरिजीकी स्तुति वानप्रस्थ लोग कररहे हैं । राजा दिवोदासने सुश्रुतादि महर्षियोंसे कुशलप्रश्नकर आगमनका कारण पूछा । तिनके वचन सुनकर सुश्रुतने कहा हे भगवन् ! मनुष्योंको व्याधिपरिपीडित रोदनपरायण और अधमरा देखकर हमारा .हृदय अत्यन्त व्याकुल हुआहै, अतएव हम आपसे व्याधिके उपायको जाननेके लिये यहां आये हैं । आप अनुग्रह करके हम लोगोंको आयुर्वेद सिखाइये । काशिराजने इनलोगोंकी प्रार्थनाको स्वीकार करके समस्त आयुर्वेदशास्त्र पढाया । मुनिकुमार भलीभाँतिसे आयुर्वेदशास्त्रको सीख आशीर्वाद दे हर्षित चित्तसे अपने २ घर आये । __ पहलीपहल महर्षि सुश्रुतने महापरिश्रम करके एक तंत्र बनाया, व उनके सहपाठियोंनेभी एक २ तंत्र रचा । सुश्रुतका बनाया तंत्र बहुतसे मनुष्यों करके सश्रुत ( भलीभांतिसे श्रुत अर्थात् विशेष समादृत) होनेसे उसका नाम सुश्रुत हुआ ।। सर्व संसारके आदि कारण श्मशाननिवासी प्रफुलेन्दुसमदेहधारी भगवान् भवानीपति महादेवजीने अपने बनाये हुए विविध तंत्रोंसे स्ववीर्यसंयुक्त अर्थात् पारदघटित अनेक औषधियोंको प्रकटकिया । इन्ही तंत्रोंसे संग्रह करके पंडितोंने विविध रसग्रंथ बनाए हैं। । इसके उपरान्त कुछ काल बीतनेपर दूसरे धन्वन्तरिकी समान भिषग्वर वाग्भट्टका जन्महुआ। इन्होंने महाराज युधिष्ठिरके यहां रहकर बहुतसे वैद्यक ग्रंथ बनाए, तिनके बनाएहुए ग्रंथों में "अष्टाङ्ग हृदयसंहिता" नामक ग्रन्थही विशेष प्रसिद्ध है। इसही ग्रंथको वाग्भट कहतेहैं । इसग्रंथमें अति.. सुन्दररीतिसे चिकित्साका कौशल दिखाई है; वाग्भटजीने इस ग्रंथको बनाकर निःसन्देह संसारका महाउपकार कियाहै। __ इस प्रकार भारतवर्षकी यह प्राचीन चिकित्सा सर्वोत्तम है इस बातको प्राचीन तत्वजानने वाले बडेबडे विद्वान्भी स्वीकार करते हैं "न०१४ सन् १८४७ ई. दिसम्बरकी कलकत्तारिभ्यु नामक पुस्तकमें लिखा है कि भारतमें जो चिकित्साविद्या प्राचीन समयसे है और जो उसकी औषधी हैं वे सब यूरुपचिकित्सा विद्याकी मूल और शिरोमणि हैं.. For Private and Personal Use Only

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