Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 4
________________ 1 ..A... +९+ सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था कलकत्ता और श्रीमहावीरजी से इसके संस्करण छपे थे । अनन्तर सन् १९७१ में आचार्य शिवसागरजी म. और आचार्यकल्प श्रुतसागरजी महाराज की प्रेरणा से पं. पन्नालालजी जैन साहित्याचार्य, सागर ने पूर्व प्रकाशित प्रतियों व भाण्डारकर रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना से प्राप्त प्रतियों के आधार पर इसे सम्पादित कर संस्कृत टीका के हिन्दी अनुवाद सहित व परिशिष्ट में पं. आशाधरजी कृत संस्कृत टिप्पण सहित श्री शान्तिवीर दि. जैन संस्थान, श्री शान्तिवीरनगर, श्रीमहावीरजी से प्रकाशित कराया था। अब ये सभी प्रकाशित ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं । ग्रन्थ नवीन प्रकाशित होकर उपलब्ध हो सके अतः पूज्य गणिनी आर्यिका १०५ श्री सुपार्श्वमती माताजी ने इसकी नवीन हिन्दी टीका की है । प्रकृत संस्करण में प्रत्येक पृष्ठ के अर्ध भाग में मूल प्राकृत गाथा, उसकी संस्कृत छाया व संस्कृत टीका मुद्रित है फिर उसी पुत्र के शेष अर्धभाग में ऊर्ध्व प्रकाशित प्राकृत संस्कृत अंश का हिन्दी अनुवाद है। संस्कृत टीका खण्डान्वय पद्धति से लिखी गई है। उसका शब्दशः अनुवाद हिन्दी भाषा की प्रकृति के अनुकूल नहीं होता अतः उसके आश्रय से हिन्दी टीका लिखी गई है। संस्कृत टीकाकार पं. रत्नकीर्तिदेव बहुज्ञ हैं, उन्होंने प्राकृत संस्कृत ग्रन्थों के अनेक उद्धरण दिये हैं, उन सबका अर्थ हिन्दी टीका में दिया गया है। यथासम्भव उद्धरणों के स्रोतों का उल्लेख भी किया गया है। आचार्य पूज्यपाद के सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ से टीकाकार ने कितना ही विषय लिया है। पूज्य माताजी ने आवश्यकतानुसार सम्पूर्ण विषय को स्पष्ट किया है और कथाओं को भी विस्तृत रूप दिया है। प्रारम्भ में पूज्य माताजी ने चतुर्विध आराधना के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए भक्तप्रत्याख्यान सल्लेखना समाधिमरण का विस्तृत वर्णन 'भगवती आराधना' के अधिकारों के अनुसार किया है। . डॉ. प्रमिला बहिन ने ग्रन्थकार देवसेन, संस्कृत टीकाकार पं. रत्नकीर्तिदेव और प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रतिपाद्य पर विस्तृत प्रकाश डाला है। पूज्य माताजी का संक्षिप्त परिचय भी उन्हीं की कलम से है। ग्रन्थ के अन्त में मूल गाथा सूची व संस्कृत टीका में उद्धृत गाथा व श्लोक सूची गई है। - पूज्य माताजी के वैदुष्य एवं परिश्रम की जितनी सराहना की जाए वह कम है। आयु के ७० से भी अधिक बसन्त पार कर लेने पर भी आप में कार्यनिष्पादन की अद्भुत क्षमता है। आपकी लेखनी सतत गतिशील रहती है। अभी-अभी आपने सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ का हिन्दी भाषान्तर पूर्ण किया है, इससे पूर्व मुनीन्द्र रविचन्द्र विरचित संस्कृत ग्रन्थ 'आराधनासमुच्चय' की विस्तृत हिन्दी टीका लिखी है। दोनों कृतियाँ सम्पादन- प्रकाशन की प्रक्रिया में हैं। अब आप रत्नकरण्डक ATEETचार की हिन्दी व्याख्या लिखने में संलग्न हैं ।

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