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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन-रहस्यवाद
नगर आगरा मांहि विख्याता । कारन पाइ भए बहु ज्ञाता ॥ पंच पुरुष अति निपुन प्रवीने । निसिदिन ज्ञान कथा रस भीने ॥१०॥
रूपचन्द पंडित प्रथम, दुतिय चतुर्भुज नाम । तृतीय भगौतीदास नर, कौरपाल गुनधाम ॥११॥ धर्मदास ए पंच जन, मिलि बेसें इक ठौर ।
परमारथ चरचा करें, इन्हके कथा न और ॥१२॥ इनमें से रुपचन्द १७ वीं शताब्दी के प्रसिद्ध रहस्यवादी कवि हुए हैं। कुंवरपाल के सहयोग से बनारसीदास ने सोमप्रभाचार्य कृत 'सूक्तिमुक्तावली' का अनुवाद किया था। भगवतीदास ने टंडाणारास, बनजारा, समाधिरास, मनकरहारास, अनेकार्थनाममाला, लघुसीतासतु, मृगांकलेखाचरित आदि २३ ग्रन्थों की रचना की थी। जगजीवन ने संवत १७७१ में बनारसीदास की उपलब्ध रचनाओं का 'बनारसी विलास' नाम से संग्रह किया था। भैया भगतीदास, द्यानतराय और भूधरदास १८ वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि और अनेक ग्रन्थों के रचयिता थे।
कहा जाता है कि बनारसीदास की भेंट प्रसिद्ध सन्त सून्दरदास और महाकवि गोस्वामी तुलमीदाम से भी हई थी। सन्त सुन्दरदास और बनारसी दास की मित्रता का उल्लेख 'सुन्दर ग्रन्थावली' के सम्पादक श्री हरिनारायण शर्मा ने किया है। दोनों की मैत्री असम्भव नहीं है, क्योंकि सुन्दरदास (सं०१६५३-१७४६) वनारसी दास के समकालीन और अध्यात्म प्रेमी सन्त कवि थे। गोस्वामी जी के विषय में कहा जाता है कि उनसे कवि की कई बार भेंट हुई थी। यह भी कहा जाता है कि 'इनको महाकवि ने रामायण की एक प्रति भेंट की थी। कुछ वर्षों के बाद जब कविवर की गोस्वामी जी से पुन: भेट हुई, नव तुलसीदास जी ने रामायण के काव्य सौंदर्य के सम्बन्ध में जानना चाहा, जिसके उत्तर में कविवर ने प्रसन्न होकर एक कविता सुनाई थी'विराजै रामायण घट माँहि ।''
इसी प्रकार एक अन्य विद्वान ने भी लिखा है कि एक बार बनारसी दास के काव्य की प्रशंसा सुन कर तुलसीदास जी उनसे मिलने आगरा आये और उनके साथ कई चेले भी थे। कविवर से मिल कर उनको बड़ा हर्ष हुआ। जाते समय उन्होंने अपनी बनाई गमायण की एक प्रति वनारसी दास को भेंट स्वरूप दी। बनारसी दास ने भी पार्श्वनाथ स्वामी की स्तुति की दो तीन कविताएँ गोस्वामी जी को भेंट स्वरूप प्रदान की। कई वर्ष पश्चात कविवर की गोस्वामी जी से फिर भेंट हई। इस बार उन्होंने 'भक्ति विरुदावली' नामक एक सुन्दर कविता कविवर जी को प्रदान की।
१. बनारमी विलास - म० श्री भंवर लाल जैन, श्री नानूगम स्मारक
ग्रन्थमाला, जयपुर, पृ०२८ भूमिका। २. विद्य रत्न पं० मूल नन्द 'वत्मल-जैन कवियों का इतिहाम, प्रकाशक
जेन नरक ममिनि, जसपुर, पृ० ३५-३६ ।