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तृतीय अध्याय
का यह अनूमान अस्पष्ट और कथन परस्पर-विरोधी है। बनारसीदास के मित्र भगवतीदास और कवि भगवतीदास को भिन्न व्यक्ति क्यों माना गया? शास्त्री जी ने इसका कोई कारण नहीं बताया। सम्भवतः कवि भगवतीदास का जन्म स्थान आगरा न होने के कारण ही शास्त्री जी को कवि भगवतीदास को बनारसीदास का मित्र मानने में संकोच हआ। किन्तु बनारसीदास का जन्म भी आगरा में नहीं हुआ था। उनका जन्म स्थान जौनपुर नगर था और कर्मक्षेत्र आगरा।
बहुत सम्भव है कवि भगवतीदास भी बनारसीदाम के मित्र बन कर आगरा में ही रहने लगे हों। शास्त्री के नं० २ और नं.३ के भगवतीदास में समय का भी कोई अन्तर नहीं है। जैन साहित्य के प्रायः सभी विद्वान कवि भगवतीदास को हो बनारसीदास का साथी स्वीकार करते हैं। श्री कामता प्रसाद जैन ने अपने इतिहास में कवि भगवतीदास का विस्तृत परिचय दिया है। बनारसीदास के पांच मित्रों का परिचय देते हुए आपने लिखा है कि 'भगवतीदास जी जैन साहित्य के प्रसिद्ध कवि भैया भगवतीदास से भिन्न जान पड़ते हैं और यह वह कवि प्रतीत होते हैं जो मनि महेन्द्रसेन के शिष्य थे और सहजादिपुर के रहने वाले अग्रवाल वैश्य थे। श्री अगरचन्द नाहटा और श्री नाथराम प्रेमी ने भी कवि भगवतीदास को ही बनारसीदास का मित्र स्वीकार किया है। १८वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि द्यानतराय ने अपने 'धर्म विलास' नामक ग्रन्थ में आगरा नगर का वर्णन करते हुए आगरा निवासी अपने पूर्ववर्ती प्रसिद्ध कवियों का भी स्मरण किया है। रूपचन्द और बनारसीदास के साथ ही भगवतीदास का स्मरण करना यह सिद्ध करता है कि बनारसीदास के मित्र रूपचन्द के समान ही कवि भगवतीदास भी आगरा में विद्यमान थे। अतएव
१. कामताप्रसाद जैन-हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० ११२ । २. देखिए-वरवाणी, वर्ष २, अंक १ ( ३ अप्रैल १६४८) में श्री न हटा जी
का लेन्य 'भैया भगवतीदास एवं केशवदास की समकालं नता पर पुनः
स्पष्टीकरण' पृ० ५। ३. बनारसीदास-प्रर्धकथानक का परिशिष्ट । ४. इधै कोट उंधै बाग जमना बहै हैं बीच,
___ पच्छिम सौं पूरब लौ अासीन ? प्रवाह मौं । अरमनी कसमीरी गुजराती मारवाड़ी,
तगैसेती जान बहुदेस बसै चाहौ। रूपचन्द बानारसी चन्द जी भगौतीदास,
जहां भले भले कवि द्यानत उछाह सों। ऐसे आगरे कहिय कौन भांति सोभा कई,
बड़ौ धर्मथानक है देखिए निवाह सौ ॥ ३० ॥
( द्यानतराय-धर्भविलान, पृ० ११५ । )