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1. यहाँ वर्तमान कृदन्त के रूप विशेष्य 'नरिंद' की तरह चले हैं। यहाँ 'नरिंद' प्रथमा विभक्ति में है, तो कृदन्त भी प्रथमा विभक्ति में रहेगा। यदि 'नरिंद' द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी आदि विभक्तियों में हो, तो वर्तमान कृदन्त भी उन्हीं विभक्तियों में होगा- हँसते हुए राजा को, हँसते हुए राजा के द्वारा, हँसते हुए राजा के लिए आदि। इन विभक्तियों को आगे समझाया जायेगा।
2. स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'ई' प्रत्यय भी लगाया जाता है। 'हसन्ती, हसमाणी' फिर इनके रूप 'लच्छी' की तरह चलेंगे। 'ई' कारान्त को आगे समझाया जायेगा। (2) वाक्यों में प्रयोग-विशेष्य : पुल्लिग, बहुवचन, प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक) (सभी कालों में)
(वर्तमानकाल) उट्ठहिं/उट्ठन्ति/आदि = राजा हँसते हुए उठते हैं। नरिंद
(विधि एवं आज्ञा) हसन्त/हसन्ता उट्ठन्तु
= राजा हँसते हुए उठे।
(भूतकाल-भूत-कृदन्त) नरिंदा | हसमाण/हसमाणा उठ्ठिअ/उट्टिआ
राजा हँसते हुए उठे।
(भविष्यत्काल) उढेसहिं/उढेसन्ति/आदि = राजा हँसते हुए उठेंगे।
वढ
(ख) अकर्मक क्रियाएँ वड्ढ = बढ़ना,
विअस = खिलना वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय
विअस वड्ढन्त = बढ़ता हुआ विअसन्त = खिलता हुआ
वड्ढमाण = बढ़ता हुआ विअसमाण = खिलता हुआ (1) वाक्यों में प्रयोग- विशेष्य : नपुंसकलिंग, एकवचन, प्रथमा विभक्ति (कर्ताकारक)
(सभी कालों में)
माण
अपभ्रंश रचना सौरभ
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