Book Title: Apbhramsa Rachna Saurabh
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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(ग) संख्यावाची रूप
पुल्लिंग - एग, एअ, एक्क
एकवचन
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
M
बहुवचन एग, एअ, एक्क
एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का
एगा, एआ, एक्का एगु, एउ, एक्कु एगो, एओ, एक्को एग, एअ, एक्क
एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का
एगा, एआ, एक्का एगु, एउ, एक्कु एगें, एएं, एक्कें
एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगेण, एएण, एक्केण एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं एगेणं, एएणं, एक्केणं एगेहिं, एएहिं, एक्केहिं एग, एअ, एक्क
एग, एअ, एक्क एगा, एआ, एक्का
एगा, एआ, एक्का एगसु, एअसु, एक्कसु एगह, एअहं, एक्कहं एगासु, एआसु, एक्कासु एगाहं, एआहे, एक्काहं एगहो, एअहो, एक्कहो एगाहो, एआहो, एक्काहो एगस्सु, एअस्सु, एक्कस्सु एगहां, एअहां, एक्कहां एगहुं, एअहुं, एक्कहुं एगाहां, एआहां, एक्काहां ___एगाहुं, एआहुं, एक्काई एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगहिं, एअहिं, एक्कहिं एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं एगाहिं, एआहिं, एक्काहिं
[चतुर्थी
षष्ठी
पंचमी
11
सप्तमी
अपभ्रंश रचना सौरभ
185
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