Book Title: Anusandhan 2005 11 SrNo 34
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 10
________________ नवेम्बर प्रति है ? __इन स्तुतियों प्रातः एवं सायं प्रतिक्रमण में इसका उपयोग किया जा सकता है । पाठको के रसास्वादन के लिए प्रस्तुति कृति प्रस्तुत है : निता श्री लक्ष्मीकल्लोलगणि रचिता वर्द्धमानाक्षरा चतुर्विंशति-जिनस्तुतिः [पण्डित श्री ५ श्रीलक्ष्मीकल्लोलगणि-चरणकमलेभ्यो नमः] १ - श्रीऋषभजिनस्तुतिः, - (श्रीछन्दसा) मेऽघं । स्याऽर्हन् ॥१॥ नोऽजाः । स्युर्यैः२ ॥२॥ नोऽकं । नव्यम् ॥३॥ गी: शं । वोऽव्यात् ॥४॥ २ - श्रीअजितजिनस्तुतिः (स्त्रीछन्दसा) अन्यः, सार्वः । सिद्धिं, दद्यात् ॥१॥ सार्वाः, सर्वे । सातं, दद्युः ॥२॥ सार्वा, वाचः । नः शं, कुर्युः ॥३॥ वाणी, देवी । लक्ष्म्यै, भूयात् ॥४॥ १. जिनाः । २. लक्ष्म्यै । ३. क्रियात् । ४. अजितः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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