Book Title: Anusandhan 2005 11 SrNo 34
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 64
________________ नवेम्बर 59 श्लो. ८५ रजो सिद्धि सिद्धिः वैश्रयणा० वै श्रमणा० श्लो. ११० मध्येन नु मध्ये ननु श्लो. १६१ रेजो (जे?) । श्लो. १६९ स (सु) नमसाध्य(?) सुनर्मसाध्यं श्लो. १७९ मनुजानिहिश मनुजानिहेश ! ___'चित्रकाव्यानि' शीर्षक श्लोकसंग्रह संस्कृतज्ञ जनो माटे उजाणी समान छे. पृ. ५४ पर आपेलो 'बिन्दुमयाली' नामक समस्याप्रकार अक्षरोने स्थाने बिन्दु (०)ओने मात्र / रेफ / विसर्ग विगेरे लगाडीने लखवाथी बने छ- एवं तेना नामथी सूचित थाय छे. सम्पादके 'ठ'कारनो उपयोग को छे, ते विचारणीय छे. वर्णोने स्थाने बिन्दुओ वापरीने लखेला श्लोकने ओळखी बताववा आह्वान करातुं हशे. देखीतुं छे के साहित्यथी सुपरिचित अभ्यासी-रसिक जन ज आq आह्वान झीली शके. पृ. ५४ पर क(?)मुख० छे त्यां स्वमुख० पाठ समुचित जणाय छे. 'रागमाला' संगीतज्ञो माटे रसप्रद बने एवी रचना छे. शाब्दिक अशुद्धि अर्थघटन माटे बाधक बने छे, तेम कडीना चरणो निर्धारित करवामां पण बाधक बने छे. श्री शान्तिनाथ भगवानना जीवनने विषय तरीके लइने विविध रागोमां शृंखलाबद्ध पदोनी आ रागमाला अन्य रागमालाओथी अलग स्वरूप धरावे छे. _ 'प्रणम्यपदसमाधानम्' ए प्राचीन 'वाद' अने आधुनिक Debate ना प्रकारनी रचना छे. पृ. ७० पर 'श्रुतिकरुः' छपायुं छे त्यां साचो शब्द 'श्रुतिकटुः' छे. पृ. ७३मां 'स्वापरसन' छे त्यां 'स्वापहसन...' समजवू जोईए. प्रतिना अन्ते खाली रहेती जगामां लेखको अथवा प्रतनो मालिको प्रकीर्ण माहिती अथवा श्लोक / दूहा / पद लखी राखता. आ रचनानी हस्तप्रतना अन्ते आवो एक समस्याश्लोक छे. समस्यानो उत्तर 'कुवलय' आपेलो ज छे, ते जोतां प्रथम चरणनी अस्पष्टता दूर थई जाय छे : किं तद्वर्णचतुष्टयेन वनजं वर्णैस्त्रिभिभूषणं अनु. ३३मां छपायेल अनु. ३२ना विहंगावलोकनमां पृ. ८६ पर प्रेसदोषथी थोडा शब्दो छूटी गया छे. 'प्रभुस्तवननो महिमा...' ए शब्दोथी शरू थती पंक्ति आ रीते वांचवी : 'प्रभुस्तवननो महिमा वर्णवती आ कृतिमां परमात्माना गुण / गरिमा । उपकारोना स्मरण । कीर्तन सिवाय चमत्कार । भौतिक लाभ जेवी वातो क्यांय नथी देखाती.' जैन देरासर, नानी खाखर-३७०४३५, कच्छ, गुजरात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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