Book Title: Anusandhan 2005 11 SrNo 34
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 27
________________ 22 अनुसन्धान ३४ ऽऽ।, , us, 55, 55, 5, सगण, तगण, तगण, नगण, सगण, रगण, रगण, गुरु । इसका प्रयोग भी क्वचित् ही होता है । त्रयोविंशल्यक्षर छन्द का नाम है - वृन्दारक । लक्षण है - 151, Is, ।ऽ।, 15, 155, Iss, Iऽऽ, Is, जगण, सगण, जगण, सगण, यगण, यगण, यगण, लघु, गुरु । इस छन्द का भी क्वचित् ही प्रयोग होता २४. चतुर्विंशत्यक्षर छन्द का नाम है - विभ्रमगति । लक्षण है - ऽऽऽ, ॥ऽ, ISI, IIS, 551, 551, 50, 55, मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण, भगण, रगण । इसका प्रयोग भी क्वचित् ही होता है । २५. पञ्चविंशत्यक्षर छन्द का नाम प्राप्त नहीं होता है । इसका लक्षण है - डा, ऽऽऽ, ऽऽऽ, II, Iऽऽ, 1, 5, 5 भगण, मगण, मगण, नगण, यगण, नगण, यगण, सगण, गुरु । प्रशस्ति पद्य के छन्द का नाम है - शार्दूलविक्रीडित । इसका लक्षण है - ऽऽऽ, ||s, ISI, ||s, ऽऽ।, 551, 5, मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण, गुरु । C/o. प्राकृत भारती अकादमी 13-ए, मेन मालवीय नगर जयपुर For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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