Book Title: Anusandhan 2005 11 SrNo 34
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 61
________________ 56 अनुसन्धान ३४ I द्वारा निर्मित असाधारण कृतियों में विविध तीर्थकल्प, विधि मार्ग प्रपा और द्वयाश्रय महाकाव्य ( कातन्त्र व्याकरण के सूत्र और श्रेणिक चरित्र) है । ये माँ पद्मावती के साधक थे । इनके चमत्कारों का वर्णन तपागच्छीय शुभशीलगणि कृत पञ्चशतीकथाप्रबन्ध और सोमधर्मगणि कृत उपदेश सप्ततिका में प्राप्त होते हैं । इनके द्वारा लगभग ७०० स्तोत्रों का निर्माण हुआ था और कथानकों के अनुसार ५०० स्तोत्र तपागच्छ के आचार्य सोमप्रभसूरि को समर्पित किए थे । इनके रचित स्तोत्रों में से लगभग ८० स्तोत्र प्राप्त होते हैं । इन स्तोत्रों में से कई स्तोत्र अष्टभाषामय, षड्भाषामय, पारसी भाषामय भी प्राप्त होते हैं । इनके उत्कट वैदुष्य को देखते हुए इस स्तोत्र के कर्त्ता भी जिनप्रभसूरि हो सकते है । प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों की लेखन परम्परा में कई स्तोत्रकारों ने अपना नाम श्लेषालङ्कार में, चित्र काव्य में और नाम के पर्यायवाची शब्दों में अथवा आद्यन्त के रूप में भी प्रदान किए हैं। साथ ही कई कृतियों में प्रणेता का नाम न होने पर भी तत्कालीन आचार्यों एवं प्रतिलिपिकारों द्वारा उस आचार्य की कृति को श्रद्धा के साथ मानते हुए अन्त में कृतिरियं श्री जिन...सूरीणां लिखते हैं । इसी प्रकार इस कृति में प्रणेता का नाम न होने पर भी कृतिरियं श्री जिनप्रभसूरीणां लिखा हो और उसी के आधार से उन्हीं की यह कृति मानी जाती हो, अत: यह कृति जिनप्रभसूरि की मानने में कोई आपत्ति नहीं है । पद्य १२ दूसरे चरण में अबलकर - भु (भू ) रुहकुंजर के स्थान पर सबलकलिभूरुहकुञ्जर और चतुर्थ चरण में मम भूरुहकुंजर (?) के स्थान पर मम केवलिकुञ्जर प्राप्त है । दिनाङ्क २९-९-०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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