Book Title: Anusandhan 2005 11 SrNo 34
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 42
________________ नवेम्बर को मिटावें" (गा. ६८४, पृ. ६४) सामान्यत: जैन साधु किसी भी व्यक्ति को सांसारिक कामनाओं की प्राप्ति का उपाय नहीं बताते हैं । फिर, वे वीतराग की ही उपासना करने का कहेंगे । किन्तु इस ग्रन्थ में एक से अधिक बार जैन मुनि ऐसा मार्गदर्शन करते दिखाई देते हैं । उदाहरणार्थ, जब रानी विजयवती आचार्य निर्मलमतिसूरि की देशना सुनने के पश्चात्, सन्तानप्राप्ति की अपनी तीव्र कामना की पूर्ति के लिए पृच्छा करती है, तब आचार्य श्री उसको कूष्माण्डी (अम्बिका) देवी की आराधना करने से ईप्सितप्राप्ति होने का कहते हैं (गा. ९२० - २२, पृ. ८५), और तदनुसार रानी के द्वारा की गई आराधना के जवाब में देवी वरदान भी देती है ( गा. ९४२, पृ. ८७) | ऐसा ही दूसरा प्रसंग नवकारमन्त्र के प्रभाव का आता है । जब वीरसेन--कुमार सरोवर के किनारे पहुँचता है, तब वहाँ अकलंक मुनि उसे पूछते हैं कि 'इस गम्भीर सरोवर को तू कैसे पार करेगा ? एक काम कर, नवकारमन्त्र का स्मरण कर, सरोवर का जल उसके प्रभाव से स्थगित हो जाएगा, और तू पार निकल जाएगा (गा. २५८७-८८, पृ. २३६-३७) । २. ४. नवकार के प्रभाव की दूसरी भी बात है, जो विस्मयजनक है । वीरसेन की भेंट घोर अरण्य में योगीन्द्र से होती है, तब योगीन्द्र उसको जुआ खेलने का आह्वान देता है । दोनों खेलने तो लगे, पर पूरा दिन बीतने पर भी कोई जीता नहीं । तभी वीरसेन ने नवकारमन्त्र का स्मरण किया, और उसके प्रभाव से वह जीत गया (गा. ५५४२४४, पृ. ५०६-७) । 37 शासनदेव की उपासना किस ढंग से करनी चाहिए, उस विषय में यह ग्रन्थ बड़ा मार्मिक मार्गदर्शन देता है । वीरसेन एवं चन्द्र श्री का पता पाने के लिए विचित्रयश राजा जब चक्रेश्वरी के सामने ध्यान लगा कर बैठता है, तब स्वयं देवी उसे यह संकेत देती है कि "तुम्हें ध्यान धरना हो तो वीतरागदेव का धरो । हम तो सराग देवता ठहरे; हम सराग पूजा यानी गीत, नृत्य आदि से ही प्रसन्न होंगे, ध्यान धरने से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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