Book Title: Anusandhan 2005 11 SrNo 34
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ नवेम्बर ६. ७. मध्यकालीन अनेक रचनाओमां उपलब्ध छे. रसोनुं निरूपण कर्या पछी तेनुं पर्यवसान वीतरागतामां विरागमां लाववुं, ए जैन रचनाकारोनो विशेष जरूर छे. पण तेनो अर्थ तेओ आना निरूपणमां अक्षम छे एम करवो, अने तेटला मात्रथी ज पादलिप्तने जैनेतर मानवा ते तो हास्यास्पद कल्पना छे. शिष्यहिता वृत्ति कया सूत्र परनी ? ते ध्रुवसाहेबे नोंध्युं नथी. सम्भवत: दशवैकालिकसूत्र परनी टीका तेमना मनमां (के समक्ष ) होवी जोईए. प्रथम तो तेमणे नोंधेल वाक्य आ टीकामां छे ज नहि. तेमणे अन्यत्र कशे वांच्युं पण होय तो पण ते वाक्य अधूरुं छे. दशवै ० परनी शिष्यहिता वृत्तिमां तरङ्गवतीनो उल्लेख आ प्रमाणे छे : 47 "लोके रामायणादिषु वेदे यज्ञक्रियादिषु, समये तरङ्गवत्यादिषु " || ( पत्र ११४). मिश्रकथा ( धर्म-अर्थ-काम वनां मिश्रणवाळी कथा) ना वर्णनमां नियुक्तिकारे जे त्रण प्रकार पाडी आपेल छे, तेनां दृष्टान्त आपतां आ. हरिभद्रसूरि नोंधे छे के लोक (लौकिक ) मां रामायण वगेरेमां; वेदोमां यज्ञक्रिया आदिमां; अने समय एटले जैनधर्म-परम्परामां तरङ्गवती वगेरेमां (मिश्रकथा) जाणवी. आ ज वात दशवै० परनी 'चूर्णिमां पण ए ज प्रमाणे वर्णवाई छे. याद रहे के चूर्णिकार हरिभद्रसूरिना पुरोगामी छे. - पादलिप्त तथा नागार्जुननो सम्बन्ध काल्पनिक होय तो पण ते वात जैन प्रबन्ध - प्रमाणे प्रचलित छे. प्रबन्धोमां इतिहास - अनुश्रुतिनुं सम्मिश्रण तो होय ज. परन्तु आ बन्ने पात्रो तो ऐतिहासिक छे, एमां शंका नथी. हवे बन्ने वच्चे सम्बन्ध हतो के केम, अने सम्बन्धनी वात ऐतिहासिक छे के केम, ते नक्की करवानुं काम तो तज्ज्ञोनुं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66