Book Title: Anusandhan 2005 11 SrNo 34
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 29
________________ 24 अनुसन्धान ३४ निजी संग्रहनी सात पत्रनी एक प्रतिना आधारे आ सम्पादन थयुं छे. प्रतिना प्रान्ते पुष्पिका आदि कशुं नथी, अने लखावट १७मा शतकनी तेमज पडिमात्रा-लिपिमां छे, तेथी अनुमान एम थाय छे के आ प्रति कर्ताना स्वहस्ते ज लखाई हशे. ग्रन्थ समजवामां सुगमता पडे ते खातर, प्रान्ते टिप्पणीरूपे, जे १८ लक्षणोनी आ विवृत्ति छे ते १८ लक्षणो पण मूक्यां छे. मो.द. देसाईए पोताना ग्रन्थ 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास'मां पृ. ५९० पर (पारा ८६७) एवी नोंध करी छे के "हीरविजयसूरिराज्ये त०सुमतिविजय शि० गुणविजये मितभाषिणी (नामनी) जातिविवृति रची, तेमां कर्ता पोताना विद्यागुरु तरीके सूरचन्द्र जणावे छे." आ नोंधमां आटली स्पष्टता करवी जोईए : "मितभाषिणी नामनी वृत्ति नहि, पण मितभाषिणी वृत्ति उपर विवृति रची." जातिविवृतिनुं मेटर तैयार थया पछी अचानक मांडवी (कच्छ) ना खरतरगच्छसंघना ज्ञान भण्डारमाथी तेनी एक प्रति छे, तेनी झे. कॉपी मळी आवी. पांच पत्रनी आ प्रति अनुमानतः १८मा शतकनी लागे छे. अशुद्धिओ घणी होवा छतां तेमां केटलाक पाठो वधु सारा जणाया छे. पाठान्तरो तेनां नोंधीने पाछळ आवेल छे. आ नकल आपवा बदल मांडवी खरतरगच्छ जैन संघना कार्यवाहकोनो आभारी छु. श्रीगुणविजयकृता जातिविवृतिः ॥ ग्रन्थः १ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ श्रीमहावीरमर्हन्तं प्रणिपत्य विधीयते । विवृतिर्मितभाषिण्यां जातिलक्षणगोचरा ॥१॥२ आत्मवृत्त्येत्यादि । आत्मनि वृत्तिर्येषां ते तथा, बुद्ध्यादयो गुणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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