Book Title: Anusandhan 2005 02 SrNo 31 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 5
________________ निवेदन 'अनुसन्धान' ए एक संशोधननी प्रवृत्ति गणाय. संशोधन ए केळववा जेवो शोख छे. आमां ज्ञानप्राप्सिनो आनन्द छे, तो ज्ञान-वहेंचणीनो पण आनन्द छे. आ आनन्दमां सहभागी सहयोगी थवा माटे सहु मित्रोने हमेशां खुल्लुं निमंत्रण छे ज. परन्तु अनुभवे समजाय छे के आमां रस लेतां सहुने करवा ए कांइ सहेलुं काम नथी ज. सद्गत हरिवल्लभ भायाणी अने जयन्त कोठारी जेवा आरूढ विद्वज्जनो हता त्यारे अवनवा शब्दो वगेरे विषे रसदायक चर्चा तथा नोंधो आव्या करती. ते बधुं तेमनी विदाय पछी जाणे के कोई करी शके तेम नथी ! एक शोध - सामयिक माटे आ स्थिति जरा खेदजनक लागे. अत्यारे तो, 'पुराणी रचनाओनां सम्पादनोनो संचय' एवं आ पत्रिकानुं स्वरूप बन्युं छे. आमां विषयोनुं तथा प्रकारोनुं वैविध्य पण उमेराय तेवी आशा रहे छे, अने ते आशा सफल बनाववानी दिशामां सहयोग आपवा विद्वानोने निवेदन छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only शी. www.jainelibrary.orgPage Navigation
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